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मंगल वचन
दोहा
१. त्रिभुवन-धव अभिनव-विभव, अनुभव-भव-आराम।
वासव-सेवित संभलं, त्रिशला-संभव स्वाम।। जो तीन लोक का स्वामी है, अभिनव-वैभव है-त्रिरत्न का धारक है, जिसका आराम अनुभव से उत्पन्न है, जो इंद्र द्वारा सेवित है, उस त्रिशला-सुत महावीर स्वामी का मैं स्मरण करता हूं।
२. अनाबाध आस्वाद युत, सरलसाद-संवाद।
हृदयाह्लाद विषादहर, वीर-वाद स्याद्वाद।।
महावीर द्वारा प्रतिपादित वाद स्याद्वाद है। वह दोषरहित है, इसलिए अनाबाध है-परवादियों द्वारा उसमें बाधा उत्पन्न करना अशक्य है। वह आग्रह से मुक्त है, इसलिए सबको आस्वाद देने वाला है। जिसमें सरल शब्दों से युक्त संवाद है। जो आग्रह से मुक्त विचारकों के हृदय को आह्लाद देने वाला है और आग्रह से उत्पन्न विषाद (तनाव) का हरण करने वाला है।
३. स्वंगी सतभंगी सुखद, सत-मत-संगी हेत।
____ व्यंगी एकांगी कृते, झंगी-सो दुख देत।।
अस्ति, नास्ति आदि जिसके सात भंग (विकल्प) हैं, वह सप्तभंगी यथार्थवाद के पक्षधर लोगों के लिए सुखद है, समस्या को सुलझाने वाली है। सुखद इसलिए है कि सापेक्षता, सहअस्तित्व आदि उसके अंग बहुत सुंदर हैं।
एकांत दृष्टिकोण वाले व्यक्ति उसके अंगों में सौंदर्य देख नहीं पाते। उनके लिए वह घोर अटवी की तरह दुःखद है, उलझन में डालनेवाली है।
११४ / कालूयशोविलास-१