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सुख मुनि की मां चांदां केसरां जड़ावां, बिद छठ बलि दीक्षा च्यारूं वरी सुभावां। मनि प्यारचंद मगनां नोजां ज्ञानांजी, पीथास-निवासिणि जीती जीवन बाजी। मां-बेट्यां' सति जेठां री सेवा सारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। लच्छी-रिखिराम पिता-सुत हरियाणे रा, बिद चेत रतनगढ़ संयम लियो सवेरा। जनपद विहार कर चूरू पावस ठायो, गुरु महर नजर स्यूं गुणंतरे गरणायो। सावण में आत्मनिवासी गुरु-गुण रीझ्या, धनरूप हेममुनि चरण रंग रंगीज्या। भाद्रवि पूनम पुनि च्यार बण्या भवतारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। २६. "मुनिवर नेमी रूपांजी भल भाल क,
पकड़ी शिवपुर पावड़ी जी। पुर पहुना रो चीपड मांगीलाल क,
प्यारांजी सह मावड़ी जी।। २७. मां विरधांजी सुता सोहनां संग क,
कार्तिक कृष्ण उणंतरै जी। चूरू में ली दीक्षा परम उमंग क,
डोढ़ मास रै अंतरै जी।।
१. साध्वी नोजांजी, साध्वी ज्ञानांजी २. साध्वीप्रमुखा ३. मुनि धनरूपजी और मुनि हेमराजी, ये दोनों परस्पर संसारपक्ष में चाचा-भतीजे थे। ४. देखें, मुनि हेमराजजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित गीत-हेम हरष धर
समरिये। ५. लय : जिणशासण में धुर स्यूं
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