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________________ दोहा १४. डूंगरगढ़ रो भानजी, बीदासर आषाढ़। __ संयम ले बाहिर हुयो, मोहकर्म-गति गाढ़। लावणी छंद १५. अब अड़सठ्ठ है बीदासर चौमासो, इकचाली श्रमणी बीस संत सुखवासो। सित सावण में छगनां बीदासर-वारी, भाद्रव बिद दो दीक्षा दोनूं सतियां री। चांदां पेमा डूंगरगढ़ री बसणारी, प्यारां पचपदरा री सित भाद्रव भारी। सारी की सारी कृपया गुरुवर तारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। १६. चूरू रो चावो सोहनलाल-सुराणो', मां सिरेकंवरजी साथ चरण रंगाणो। सरदारशहर रो आशकरण अगवाणी, पूनां चांदांजी दोनूं सती सयाणी। आसो सुद चवदस पांचूं संयम साध्यो, गुरुदेव दयालू रो इंगित आराध्यो। है खुली खान-सी देखो बेराग्यां री, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। १७. मीठै-चंपक रो छोटो भाई चूनों, कार्तिक-दीक्षित संसार लग्यो है सूनो। पूरो अड़सठ रो पावस अब राजाणे, पो, बिद पख में है दीक्षा पांच प्रमाणै। बो घोर तपस्वी मुनि सुखलाल' सिसोद्यो, फूलां मुक्खां मालू निज जीवन सोध्यो। १. देखें प. १ सं. ४३ २. देखें प. १ सं. ४४ ३. देखें, मुनि सुखलालजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित गीत-घोर तपसी हो मुनि घोर तपसी। उ.१, ढा.१६ / १०७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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