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२०. कार्यदक्षता देखी, दक्ष-शिरोमणी,
विस्मित चित्त विशेखी, बलि-बलि सिर धुणी। अकटुता पटुताई, अल्प अनेह में,
कुण आ किंयां सिखाई? ईं भ्रम में भमै।। २१. रवि नै कुण सीखावै, पंक प्रशोषणो,
अमृतरुचि नै आवै, पंकज पोषणो। सागर में शोभावै, सहज सधीरता,
त्यूं ही कालू-काये, पटु कोटीरता।। २२. ब्रह्मचर्य री आभा अभिनव आबरू,
जिनशासन में वा-वा अधिक उजागरू। पूरी प्रथमोल्लासे ढाळ आ पनरमी, कालूयशोविलासे तन-मन में रमी।।
ढाळः १६.
दोहा
१. प्रथमोल्लास प्रसंग में, दीक्षा-व्यतिकर देख। ___पाठक-सुविधा-हित करूं, एकत्रित उल्लेख।। २. छ्यासछै स्यूं सित्तरै, माघोत्सव चौमास। __ थोड़े में बलि वर्णवू, शासण रो इतिहास ।। ३. पूनमचन्द जसोल रो, सुद सातम आसोज।
प्रथम-प्रथम दीक्षा ग्रही, करणै अंतर खोज'।। ४. कार्तिक कृष्ण अमावसी, दो दीक्षा दृढ़ कोल। ___ करणपुरी लिछमां सती, मालू जनम जसोल।। ५. सुद कार्तिक एकादशी, रूपां संयम साध। च्यारूं दीक्षा छ्यांसठे, चंदेरी अविवाद ।।
लावणी छंद ६. मिगसर बिद नवमी देवगढ़ी इक आछो,
कस्तूर नाम पृथ्वी-मुनि-दीक्षित साचो।
१. देखें प. १ सं. ३६ २. देखें प. १ सं. ४०
१०४ / कालूयशोविलास-१