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पूज्य-वदन-घन-पाणी, वाणी बरसती,
गणवन री विकसाणी, कलियां हरसती।। १३. शिक्षा-शुक्तिज सारा, इकधारा चुगै,
मुनि मानस-वसणारा, नहिं इत-उत डुगै। माघ-महोत्सव हेते, मनुज उम्हाविया,
वहता वासर केते, प्रभु-पद पाविया ।। १४. देश-देश रा वासी, निज-निज वेष में,
छोड़ी ऐश-विलासी, सुकृत-गवेष में। झुक-झुक निज सिर झोंकै, पूज्य पदाम्बुजे,
देवालय ज्यूं धोकै, कर-युग संयुजे ।। १५. जुळ-जुळ आवै आगै, पाका पानड़ा,
लुळ-लुळ चरणां लागै, बालक नानड़ा। ऊंचै शब्द उचारै, स्वाम! खमा घणी,
पाखति आय पुकारै,आरत आपणी।। १६. भाखै मारग मूको, शीघ्र अबार स्यूं,
आया ले निज कूको, कोश हजार स्यूं। माल-मलीदै ढूको, नित-नित मोज स्यूं,
म्हारै हाथे टूको, बहुली खोज स्यूं।। १७. पूछे प्रभु! सुखसाता, है तनुरत्न में,
थारै लारै त्राता! सफल प्रयत्न में। मांगे मन अनुरागे, मुख आगे खड़ा,
गुरु आगल समभागे, लहुड़ा नै बड़ा।। १८. सातम वासर आयो, सफल उमंग में,
वचन-अगोचर छायो, मंगल संघ में। च्यार तीरथ रा मेळा, रंग-रेळा वरै,
मनु नन्दन-वन केळा, सुर भेळा करै।। १६. सात तीन सिंघाड़ा, गणविभु ठाविया',
मेटण पाप-पवाड़ा, भवि मन भाविया। देश-देश विचराया, मुनिवर आर्यिका, . चउमासा उचराया, जहजोगे जिका ।
१. देखें प. १ सं. ३८
उ.१, ढा.१५ / १०३