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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
II. प्रज्ञापना, 1.98
बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेक्खविहाणे पण्णत्ते, तं जहा-बंभी जवणाणिया दोसापुरिया खरोट्ठी पुक्खरसारिया भोगवईया पहराईयाओ य अंतक्खरिया अक्खरपुट्ठिया वेणइया णिण्हइया अंकलिवी गणितलिवी गंधव्वलिवी आयंसलिवी माहेसरी दामिली
पोलिंदी। 123. भगवती, 1.1.2-3
नमो बंभीए लिवीए।
नमो सुयस्स। 124. ललितविस्तर, अध्याय-10, पृ. 88 (मिथिला विद्यापीठ दरभंगा प्रकाशन)
कतमां मे भो उपाध्याय लिपिं शिक्षापयासि। ब्राह्मी खरोष्टीपुष्करसारिं अंगलिपिं वंगलिपिं मगधलिपिं मंगल्यलिपिं अंगुल्यलिपिं शकारिलिपिं ब्रह्मगलिपिं पारूस्यलिपि द्राविडलिपिं किरातलिपिं दाक्षिण्यलिपिं उग्रलिपि संख्यालिपि अनुलोमलिपिं अवमूर्धलिपिं दरदलिपि, खाष्यलिपिं चीनलिपिं लूनलिपिं हूणलिपिं मध्याक्षरविस्तरलिपिं पुष्पलिपिं देवलिपिं नागलिपिं यक्षलिपिं गन्धर्वलिपिं किन्नरलिपिं महोरगलिपि असुरलिपिं गरूडलिपिं मृगचक्रलिपिं वायसरूतलिपिं भौमदेवलिपि अन्तरिक्षदेवलिपिं उत्तरकुरूद्वीपलिपिं अपरगोडानीलिपिं पूर्वविदेहलिपिं उत्क्षेपलिपिं निक्षेपलिपिं विक्षेपलिपिं प्रक्षेपलिपिं सागरलिपिं वज्रलिपिं लेखप्रतिलेखलिपिं अनुद्रुतालिपिं शास्त्रावर्ता गणनावालिपिं उत्क्षेपावलिपिं निक्षेपावर्तालिपिं पादलिखितलिपिं द्विरुत्तरपदसंधिलिपि यावद्दशोत्तरलिपि मध्याहारिणिलिपिं सर्वरुतसंग्रहणीलिपिं विद्यानुलोभाविमिश्रतलिपि ऋषितपस्तप्तां रोचमानां धरणीप्रेक्षिणीलिपिं गगनप्रेक्षिणीलिपिं सर्वौषधिनिष्यन्दां सर्वसारसंग्रहणी सर्वभूतरुतसंग्रहणीम्। आसां भो उपाध्याय चतुष्षष्टीलिपिनां कतमां
त्वं शिष्यापयिष्यसि। 125-I. आवश्यकनियुक्ति, गाथा-212
लेहं लिवीविहाणं जिणेणं बंभीइ दाहीणकरेणं।
गणिअं संखाण सुंदरीइ वामेण उवइ8 ।। II. आवश्यकचूर्णि, पृ. 156
बंभीए दाहिणहत्थेण लेहो दाइतो। III. भगवतीवृत्ति, 1.1.2, पृ. 5
लेह लिवीविहाणसं जिणेण बंभीइ दाहिणकरेणं। IV. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, 1.2.963
अष्टादश लिपिब्राझिया अपसव्येन पाठिना।