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शिष्य गुणसेन हुये और गुणसेन के शिष्य नरेन्द्रसेन हुये । नरेन्द्रसेन 'धर्मरत्नाकर' के कर्त्ता जयसेन के वंशज हैं। नरेन्द्रसेन को विक्रम की 12वीं शताब्दी के द्वितीय चरण का विद्वान् मानना उचित है। नरेन्द्रसेन भी अमितगति के समान काष्ठसंघी ही प्रतीत होते हैं। काष्ठासंघ में नन्दितट, माथुर, बागड़ और लाटवागड़ या झाडवागड़ ये चार प्रसिद्ध गच्छ हुये हैं।
नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा विरचित 'गोम्मटसार' तथा 'त्रिलोकसार' का भी उपयोग नरेन्द्रसेन ने अपनी रचना में किया प्रतीत होता है। इसकी एक ही रचना उपलब्ध है सिद्धान्तसार-संग्रह। यह ग्रन्थ 12 अध्यायों में विभाजित है, और संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में लिखा गया है। प्रत्येक अध्याय के अन्त में छन्द-परिवर्तन हुआ है, और पुष्पिका में 'सिद्धान्तसार - संग्रह' यह नाम दिया गया है। निश्चयतः इस ग्रन्थ में 'तत्त्वार्थसार' की अपेक्षा अनेक विषयों का समावेश है। 'तत्त्वार्थसार' में चर्चित विषयों का विस्तारपूर्वक कथन किया ही गया है।
आचार्य नेमिचन्द्र मुनि
'द्रव्यसंग्रह' के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती से भिन्न अन्य कोई नेमिचन्द्र हैं, जिन्हें नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव या नेमिचन्द्रमुनि कहा गया है। 'द्रव्यसंग्रह ' के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव का समय विक्रम संवत् की 12वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। अर्थात् ईस्वी सन् की 11वीं शती का अन्तिम पाद है। नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव की दो ही रचनायें उपलब्ध हैं 1. लघुद्रव्यसंग्रह, और 2. वृहद्द्द्रव्यसंग्रह। ग्रन्थकार ने इसमें बहुत संक्षेप में जैनदर्शन के प्रमुख तत्त्वों का कथन किया है।
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आचार्य सिंहनन्दि
गंग - राजवंश की स्थापना में सहायता देनेवाले आचार्य सिंहनन्दि विशेष उल्लेखनीय हैं। गंगवंश का सम्बन्ध प्राचीन 'इक्ष्वाकुवंश' से माना जाता है। मूलतः यह वंश उत्तर या पूर्वोत्तर का स्वामी था। ईस्वी सन् की दूसरी शताब्दी के लगभग इस वंश के दो राजकुमार दक्षिण में आये। उनके नाम 'दडिग' और 'माधव' थे। 'पेरूर' नामक स्थान में उनकी भेंट जैनाचार्य सिंहनन्दि से हुई। सिंहनन्दि ने उनकी योग्यता और शासनक्षमता देखकर उन्हें शासनकार्य की शिक्षा दी।
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सिंहनन्दि को मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय, काणूरगण और मेषपाषाणगच्छ का आचार्य तथा दक्षिणवासी बताया है। सिंहनन्दि के प्रभाव से ही गंगराजाओं ने जैनधर्म को संरक्षण प्रदान किया था। ये आगम, तर्क, राजनीति और व्याकरण - शास्त्र आदि विषयों के ज्ञाता थे। इनका समय ई. सन् की द्वितीय शताब्दी है ।
उपर्युक्त उल्लेखों से विदित है कि गंगवंश - संस्थापक सिंहनन्दि राजनीति के
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ