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किया गया है। काव्य-शास्त्रीय मानदण्डों एवं जैन-सिद्धान्तों के सुन्दर समायोजन से अलंकृत यह रचना आचार्य विमलसूरि के अगाध वैदुष्य तथा भावुक कवि-हृदय होने का जीवन्त प्रमाण है। इसका परवर्ती समस्त रामकथा-साहित्य पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। यहाँ तक की वैदिक-परम्परा के कवि गोस्वामी तुलसीदास ने भी अपने 'रामचरितमानस' को इनसे उपकृत माना है, और लिखा है
जे प्राकृतकवि परम सयाने, भाषों जिन हरिचरित बखाने। भये जे अहहिं जे होहहिं आगे, प्रनवहुँ सबहिं कपट सब त्यागे॥
इससे आचार्य विमलसूरि की प्रभावोत्पादकता को स्पष्टरूप से परिलक्षित किया जा सकता है। आचार्य ऋषिपुत्र
आप जैन-ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान् थे। आपके पिता आचार्य गर्ग भी ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनके द्वारा रचित 'पाशकेवली' नामक ग्रंथ पटना के पुस्तकालय में मिलता है। सम्भवतः गर्ग के पुत्र होने के कारण ही इनका नाम 'ऋषिपुत्र' प्रसिद्ध हुआ। आपके द्वारा रचित 'ऋषिपुत्र-संहिता' का उल्लेखमात्र मिलता है। विद्वानों ने विभिन्न प्रमाणों की समीक्षा करके आपका समय ईसा की छठी-सातवीं शताब्दी अनुमानित किया है।
प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि आचार्य ऋषिपुत्र फलित-ज्योतिष के विशिष्ट विद्वान् थे, तथा इनके उपलब्ध ग्रंथ 'निमित्त-शास्र' के आधार पर ही इनके वैदुष्य का अनुमान किया जा सकता है। आचार्य मानतुंग
__भक्ति-साहित्य के सृष्टा आचार्य मानतुंग एक ऐसे अद्वितीय आचार्य हैं, जिनकी प्रतिष्ठा दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में समानरूप से है। आपके द्वारा रचित 'भक्तामर-स्तोत्र' मात्र 48 'वसंततिलका' पद्यों की संक्षिप्त रचना होते हुये भी यह जैन-समाज में सर्वाधिक प्रचलित एवं गायी जाने वाली रचना है। आपकी रचना की बहुश्रुतता के कारण आपके बारे में दोनों सम्प्रदायों में अनेक प्रकार की कथायें प्रचलित हो गईं, किन्तु आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अपने आप में पर्याप्त प्रतिष्ठा रखता है, और इन कथाओं से उसे प्रतिष्ठा की अपेक्षा नहीं है। भाषा-शैली, अलंकार, गेयता एवं प्रभावोत्पादकता आदि की दृष्टि से आचार्य मानतुंग द्वारा रचित 'भक्तामर-स्तोत्र' एक अद्वितीय काव्य है, जिसको अन्तर्राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा प्राप्त है।
विद्वानों ने व्यापक चिंतन के बाद आपका काल सम्राट श्रीहर्ष के निकट माना है। अत: हम इन्हें ईसा की सातवीं शताब्दी का विद्वान् मान सकते हैं। आपकी रचना भक्ति, दर्शन एवं काव्यत्व की पावन त्रिवेणी है।
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भगवान महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ