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माता-पिता कर्नाटक राज्य के 'कोले' नामक ग्राम के निवासी, उच्चकुलीन ब्राह्मण थे, तथा पिता का नाम 'माधवभट्ट' एवं माता का नाम 'श्रीदेवी' था। आप बाल्यकाल से ही दीक्षित माने जाते हैं। आपका स्थितिकाल पाँचवीं शताब्दी ईस्वी माना गया है।
___ आचार्य पूज्यपाद देवनन्दि ने दशभक्ति, जैनाभिषेक, तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थसिद्धि), जैनेन्द्र-व्याकरण, सिद्धिप्रिय-स्तोत्र, इष्टोपदेश तथा समाधिशतक आदि ग्रन्थों की रचना की। इनके अतिरिक्त वैद्यक-सम्बन्धी ग्रन्थ भी आचार्य पूज्यपाद के द्वारा रचित माना जाता है।
उनके वैदुष्य का अनुमान 'सर्वार्थसिद्धि' ग्रन्थ से किया जा सकता है। नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त, बौद्ध आदि विभिन्न दर्शनों की समीक्षा कर इन्होंने अपनी विद्वत्ता प्रकट की है। निर्वचन और पदों की सार्थकता के विवेचन में आचार्य पूज्यपाद की समकक्षता कोई नहीं कर सकता है। आचार्य स्वामी पात्रकेसरी
___ महान दार्शनिक कवि स्वामी पात्रकेसरी का जन्म उच्चकुलीन ब्राह्मणवंश में हुआ था, तथा ये किसी राजा के महामात्य-पद पर प्रतिष्ठित थे - ऐसा विद्वान् अनुमान करते हैं। अहिच्छत्र नगर के पार्श्वनाथ भगवान के चैत्यालय में चारित्रभूषण मुनि के मुख से आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित 'देवागम-स्तोत्र' को सुनकर उसका अर्थ विचारकर इनकी जैन-तत्त्वों पर प्रगाढ़ श्रद्धा हो गई, और अंततः वे जैन-मुनि बन गये। कहा जाता है कि हेतु के लक्षण के विषय में उन्हें कुछ संदेह बना रहा, तो रात्रि के अन्तिम प्रहर में उन्हें एक स्वप्न आया कि पार्श्वनाथ स्वामी के मंदिर में प्रतिमा की फणावली पर उन्हें हेतु का लक्षण लिखा हुआ मिल जायेगा, और अगले दिन प्रात:काल जब वे मन्दिर में पहुँचे, तो उन्हें हेतु का निम्नलिखित लक्षण फणावली पर लिखा हुआ मिला
"अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम्।
नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम्॥" इसके बाद स्वामी पात्रकेसरी ने जैन-दर्शन एवं न्याय के विषय में अपना लेखन प्रारम्भ किया, तथा 'त्रिलक्षण-कदर्थन' नामक ग्रन्थ की रचना की। इसके अतिरिक्त 'पात्रकेसरी-स्तोत्र' नामक रचना भी आपने की, जोकि उपलब्ध है; जबकि "त्रिलक्षण-कदर्थन' उल्लेखमात्र शेष है। आपको ईस्वी सन् की छठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का मनीषी-साधक माना जाता है।
समकालीन समस्त दर्शनों की मान्यताओं का न्यायशास्त्रीय रीति से प्रभावी समीक्षण करते हुये जैन-दर्शन की अवधारणाओं की तर्क और युक्तिसहित पुष्टि करने में स्वामी पात्रकेसरी का अतिमहत्त्वपूर्ण स्थान है।
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ