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ऋषभदेव को अरबिया में 'बाबा आदम' कहा जाता है। मौर्य-सम्राट् सम्प्रति के शासनकाल में वहाँ और फारस में जैन-संस्कृति का व्यापक प्रचार हुआ था, तथा वहाँ अनेक बस्तियाँ विद्यमान थीं।
मक्का में इस्लाम की स्थापना के पूर्व वहाँ जैनधर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार था। वहाँ पर अनेक जैन-मंदिर विद्यमान थे। इस्लाम का प्रचार होने पर जैन-मूतियाँ तोड दी गईं, और मंदिरों को मस्जिद बना दिया गया। इस समय वहाँ जो मस्जिदें हैं, उनकी बनावट जैन-मंदिरों के अनुरूप है। इस बात की पुष्टि जैम्सफर्ग्युसन ने अपनी 'विश्व की दृष्टि' नामक प्रसिद्ध पुस्तक के पृष्ठ 26 पर की है। मध्यकाल में भी जैन-दार्शनिकों के अनेक संघ बगदाद और मध्य एशिया गये थे, और वहाँ पर अंहिसाधर्म प्रचार किया था।
यूनानियों के धार्मिक इतिहास से भी ज्ञात होता है, कि उनके देश में जैन-सिद्धांत प्रचलित थे। पाइथागोरस, पायरों, प्लोटीन आदि महापुरुष श्रमणधर्म और श्रमण-दर्शन के मुख्य प्रतिपादक थे। एथेन्स में दिगम्बर जैन-संत श्रमणाचार्य का चैत्य विद्यमान है, जिससे प्रकट है कि यूनान में जैनधर्म का व्यापक प्रसार था। प्रोफेसर रामस्वामी ने कहा है कि बौद्ध और जैन-श्रमण अपने-अपने धर्मों के प्रचारार्थ यूनान-रोमानिया और नार्वे तक गये थे। नार्वे के अनेक परिवार आज भी जैनधर्म का पालन करते हैं। आस्ट्रिया और हंगरी में भूकम्प के कारण भूमि में से बुडापेस्ट नगर के एक बगीचे से महावीर स्वामी एक प्राचीन मूर्ति हस्तगत हुई थी। अतः यह स्वतः सिद्ध है कि वहाँ जैन-श्रावकों की अच्छी बस्ती थी।
सीरियों में निर्जनवासी श्रमण-सन्यासियों के संघ और आश्रम स्थापित थे। ईसा ने भी भारत आकर सन्यास और जैन तथा भारतीय दर्शनों का अध्ययन किया था। ईसा मसीह ने बाइबिल में जो अहिंसा का उपदेश दिया था, वह जैन-संस्कृति और जैन-सिद्धांत के अनुरूप है।
___ स्केडिनेविया में जैनधर्म के बारे में कर्नलटाड अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'राजस्थान' में लिखते हैं, कि "मुझे ऐसा प्रतीत होता है, कि प्राचीनकाल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुये हैं। इनमें पहले आदिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे। ये नेमिनाथ की स्केडिनेविया निवासियों के प्रथम औडन तथा चीनियों के प्रथम 'फे' नामक देवता थे। डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार के अनुसार सुमेर जाति में उत्पन्न बाबुल के सिल्दियन सम्राट नेबुचंद नेजर ने द्वारका जाकर ईसा-पूर्व 1140 के लगभग नेमिनाथ का एक मंदिर बनवाया था। सौराष्ट्र में इसी सम्राट् नेबुचंद नेजर का एक ताम्र-पत्र प्राप्त हुआ है।"
केश्पिया में जैनधर्म मध्य एशिया के बलख क्रिया मिशी, माकेश्मिया, उसके बाद मासवों नगरों अमन, समरकन्द आदि में जैनधर्म प्रचलित था, इसका उल्लेख ईसापूर्व पाँचवीं, छठी शती के यूनानी इतिहास में किया गया था। अत: यह बिल्कुल संभव है कि जैनधर्म का प्रचार कैरिपया, रूकाबिया और समरकन्द बोक आदि नगरों में रहा था।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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