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निश्चय ही कर लिया, तो उनके श्वसुर को बहुत अधिक दुःख हुआ।
आपने परमपूज्य आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के पादमूल को पाकर अपने संकल्प को पूर्ण किया। सन् 1925 में ' श्रवणबेलगोला' के महामस्तकाभिषेक के समय पर आपने 'क्षुल्लक दीक्षा' ली तथा 'सोनागिरी' क्षेत्र (म.प्र.) पर 'मुनिदीक्षा' ली और 'मुनि कुंथुसागर' के नाम से प्रसिद्ध हुये। जब आप घर छोड़ करके साधु हुये, तब आपकी धर्मपत्नी धर्मध्यान करती हुईं घर में ही रही थीं। साहित्य-निर्माण में आपकी बहुत रुचि थी। आपने चतुर्विंशतिजिनस्तुति, शांतिसागर-चरित्र, बोधामृतसागर, निजात्मशुद्धिभावना, मोक्षमार्गप्रदीप, ज्ञानामृतसागर, स्वरूपदर्शनसूर्य, मनुष्यकृत्सार, शांतिसुधासिन्धु आदि नीतिपूर्ण, तत्त्वगर्भित 40 ग्रन्थरत्नों की रचना करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया ।
आपके दुर्लभ संस्कृतभाषा - पांडित्य पर बड़े-बड़े विद्वान् पंडित भी मुग्ध हो जाते थे। आपकी ग्रन्थनिर्माण - शैली अपूर्व थी। आपकी भाषण प्रतिभा, शांत व गंभीर मुद्रा के सामने बड़े-बड़े राजाओं के मस्तक झुकते थे। गुजरात प्रान्त के प्रायः सभी संस्थानाधिपति आपके आज्ञाकारी शिष्य बने हुये हैं। हजारों की संख्या में जैनेतर आपके सदुपदेश से प्रभावित होकर मकारत्रय (मद्य, मांस, मधु) के त्यागी व संयमी बन चुके थे।
गुजरात व बागड़ प्रान्त में आपके द्वारा जो धर्म - प्रभावना हुई वह इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में चिरकाल तक अंकित रहेगी। गुजरात में कई संस्थाओं ने अपने राज्य में इस तपोधन के जन्मदिन के स्मरणार्थ सार्वजनिक छुट्टी व सार्वत्रिक अहिंसादिवस मनाने के आदेश निकाले हैं। 'सुदसना स्टेट' के प्रजावत्सल नरेश तो इतने भक्त बन गये थे कि मुनि - महाराज का जहाँ-जहाँ विहार होता था, वहाँ प्रायः उनकी उपस्थिति रहती थी। कभी अनिवार्य राज्यकार्य से परवश होकर महाराज से विदा लेने का प्रसंग आने पर 'माता से बिछड़ते हुये पुत्र के समान' नरेश की आँखों से आँसू बहते थे।
गुजरात में जैन, जैनेतर, हिन्दू एवं मुसलमान उनके चरणों के भक्त थे । अलुवा, माणिकपुर, पेथापुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, खांदू आदि अनेक स्टेटों के अधिपति आपके सद्गुणों से मुग्ध थे। बड़ौदा राज्य में आपका अपूर्व स्वागत हुआ । राज्य के न्यायमन्दिर में स्टेट के प्रधान सर कृष्णमाचारी की उपस्थिति में आचार्यश्री का सार्वजनिक तत्त्वोपदेश हुआ था।
गुजरात में विहार कर महाराजश्री ने राजस्थान के गड़-प्रान्त को पावन किया। विक्रम-संवत् 2001 में आपका पदार्पण 'धरियावद' हुआ। इसी वर्ष धरियावद में 51 वर्ष की आयु में आषाढ़ कृष्ण 6, रविवार, दिनांक 1-7-1945 ई. को समाधिमरण पूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया ।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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