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________________ आपके सान्निध्य में सम्पन्न हुईं। आचार्यश्री की विद्वत्तापूर्ण प्रवचन-शैली बहुत आकर्षक थी। आचार्य विद्यानन्द जी मुनिराज आपके शिष्य हैं। आपने भरतेश-वैभव, रत्नाकर-शतक, परमात्म-प्रकाश, धर्मामृत, निर्वाण-लक्ष्मीपति-स्तुति, निरन्जन-स्तुति आदि कन्नड़ भाषा के महान् ग्रन्थों का हिन्दी, गुजराती, मराठी भाषा में अनुवाद किया था। अपने समय के प्रभावक आचार्य रहते हुये आपने समाधिमरण सन् 1989 में 'कोथली' (महाराष्ट्र) में प्राप्त किया था। आचार्य पायसागर जी महाराज आपका जन्म ऐनापुर में फाल्गुन शुक्ला पंचमी वीर नि.सं. 2415 को हुआ था। आपने गोकाक के जैन-मन्दिर में श्रीमद् श्री शांतिसागर जी महाराज से कार्तिक सुदी 4 वीर सं. 2450 सन् 1923 में 'ऐलक-दीक्षा' ली। 'सोनागिरि' सिद्धक्षेत्र पर आचार्यश्री से ही वि.सं. 2456 में 'मुनि-दीक्षा' ग्रहण की। 12-10-56 में आपने अपना 'आचार्य-पद' मुनि अनन्तकीर्ति जी को सौंप दिया तथा 'स्तवनिधि तीर्थक्षेत्र' पर समाधिपूर्वक शरीर को छोड़ा। आप कुशल वक्ता, दीर्घ तपस्वी और प्रभावी आचार्य थे। आपने अनेकों श्रावकों को दीक्षा देकर सत्पथ में लगाया। आचार्य श्रीसन्मतिसागर जी54 आपका जन्म विक्रम संवत् 1995 में माघ शुक्ल सप्तमी को उत्तरप्रदेश में 'एटा' जिले के अन्तर्गत 'फफूता' नामक ग्राम में हुआ। सेठ प्यारेलाल जी आपके पूज्य पिता थे और आपकी माता का नाम जयमाता था। बड़ा ही धर्मात्मा परिवार था। अत: बचपन से ही आपका जीवन धर्म के संस्कारों से ओतप्रोत था। ज्योतिषी ने भी भविष्यवाणी करते हुये बतलाया कि "बच्चा होनहार है, विद्वान् तो होगा ही; परन्तु उच्च पद प्राप्त करेगा।" केवल 9 वर्ष की अवस्था में ही धार्मिक और लौकिक शिक्षा दोनों में दक्षता प्राप्त कर ली। हिन्दी, गणित, इतिहास, भूगोल, व्याकरण, नागरिकशास्त्र आदि अनेक विषयों के ज्ञाता हो गये। बी.ए. तक लौकिक-शिक्षा प्राप्त की और 'पुरुषार्थसिध्युपाय' तक धार्मिक शिक्षा अर्जित की। आपको आचार्यश्री विमलसागर द्वारा 'सम्मेद शिखर जी' में मुनिदीक्षा दी गयी और 'मुनि सन्मतिसागर' नाम रखा। 'आचार्य'-पद 'मेहसाणा' में आचार्य महावीरकीर्ति से प्राप्त किया। आचार्यश्री का विहार जब बनारस से अयोध्या की तरफ हो रहा था, तब कुछ डाकुओं ने संघ में उपद्रव किया; परन्तु दूसरे दिन वे ही डाकू आचार्यश्री के चरणों में नतमस्तक हुये और अपने दुष्कृत्य की बार-बार क्षमा याचना की तथा डाकू-जीवन का त्यागकर अनेक प्रकार के व्रत-नियम लिये। भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 00143
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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