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________________ व्यवसाय भी करने लगे। लेकिन काव्य - निर्माण में विशेष रुचि लेने के कारण उनको व्यवसाय में मन नहीं लगा। विवाह की चर्चा आने पर उन्होंने आजन्म अविवाहित रहने की अपनी हार्दिक इच्छा व्यक्त की और अपने आपको माँ जिनवाणी की सेवा में समर्पित कर दिया । 49 - उन्होंने सन् 1955 में 'क्षुल्लक दीक्षा' धारण की। सन् 1959 में आचार्य शिवसागर से 'मुनि दीक्षा' प्राप्त की । सन् 1969 में 'आचार्य पद' प्राप्त किया। जून 1973 को समाधिमरण प्राप्त किया। आपने संस्कृत एवं हिन्दी में अनेक महाकाव्य, काव्य एवं हिन्दी में भी कितने ही काव्यों की रचना की। आप वर्तमान के आचार्य विद्यासागर के दीक्षा - गुरु हैं । आचार्य महावीरकीर्ति जी आचार्यश्री का जन्म बैशाख शुक्ल 9 संवत् 1967 में उ.प्र. के 'फिरोजाबाद' नगर के पठानान मोहल्ले में हुआ था। आपका बचपन का नाम 'महेन्द्रकुमार' था। आपकी माता 'बूंदादेवी' बड़ी धर्मात्मा थीं उन्हीं के विचारों और संस्कारों का प्रभाव बालक महेन्द्र पर पड़ा। मुनिराज ने 20 वर्ष की अवस्था में विक्रम संवत् 1987 में परमपूज्य मुनि चन्द्रसागर जी मुनिराज से सप्तम - प्रतिमा ग्रहण की और संवत् 1995 अर्थात् 28 वर्ष की अवस्था में गुजरात प्रान्त के 'टाकाटोंका' ग्राम में परमपूज्य आचार्यकल्प वीरसागर जी से क्षुल्लक दीक्षा ली तथा 32 वर्ष की अवस्था 1999 में परमपूज्य आचार्य आदिसागर जी महाराज से 'मुनि दीक्षा' धारण की। आचार्य महाराज ने अपने संघ-सहित भारत के नगरों और तीर्थक्षेत्रों पर विहार किया और अपनी अमृतमय वाणी से जनता का उपकार किया। सैकड़ों नगर और गाँव आपके पदार्पण से पवित्र हुये । आपके विहार में कई स्थानों पर उपसर्ग हुये और उन्हें आपने शांति से सहन किया । परमपूज्य आचार्यश्री महावीरकीर्ति जी भी अब हमारे बीच नहीं रहे। ऐसे लोकोपकारी आचार्य श्री का 6 जनवरी 1972 ई. को रात्रि के 9.18 बजे मेहसाणा (गुजरात) में समाधिमरण हो गया। 50 आचार्य सूर्यसागर" आचार्य शांतिसागर जी के पश्चात् जिन जैनाचार्यों का समाज एवं सांस्कृतिक विकास में सबसे अधिक योगदान रहा, उनमें आचार्य सूर्यसागर जी महाराज का नाम सबसे उल्लेखनीय है। आचार्यश्री 20वीं शताब्दी के महान् सन्त थे । आपका महान् व्यक्तित्व एवं तप:साधना देखते ही बनती थी। देश के विभिन्न भागों में विहार करके आपने समस्त जैन समाज को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था। आचार्यश्री का जन्म संवत् 1940 के कार्तिक शुक्ला नवमी के शुभदिन हुआ भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 00141
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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