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(3) राजा श्री पूरणचन्द जी, (4) राजा श्री योमसिंह जी, (5) राजा श्री अजबसिंह जी, (6) राजा श्री अभैराम जी, (7) राजा श्री नरोत्तम जी, (8) राजा श्री झांझाराम जी, (9) राजा श्री जसोरामजी, (10) राजा दमतारि जी, (11) राजा श्री भूधरमल जी, (12) राजा श्री रामसिंह जी, (13) राजा श्री दुरजन सिंह जी, (14) राजा श्री साहिमल जी। ये सब महाराज खण्डेलगिरि के परिवार के होने के कारण इन्हें भी 'राजा' की उपाधि प्राप्त थी। इन सबको जैनधर्म में एकसाथ दीक्षित किया गया।
2. अग्रवाल
उत्तर भारत में 'अग्रवाल' जैन-जाति अत्यधिक प्रसिद्ध, समृद्ध एवं विशाल संख्यावाली जाति मानी जाती है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, देहली जैसे प्रदेश अग्रवाल-दिगम्बर-जैनों के प्रमुख केन्द्र है।। जैनधर्म, साहित्य एवं संस्कृति के विकास में अग्रवाल-जैनों का प्रमुख योगदान रहा है। अग्रवाल-जाति जैन एवं - वैष्णव दोनों में बंटी हुई है, तथा उन दोनों में सामाजिक सम्बन्ध भी प्रगाढ़ बने हुये हैं। लेकिन अग्रवाल जैन-समाज धर्म और संस्कृति के परिपालन में अन्य किसी जैन-जाति से पीछे नहीं हैं। मन्दिर निर्माण करवाने, साहित्य को संरक्षण देने, साधु-जीवन अपनाने अथवा उनकी सेवा-सुश्रूषा में, तीर्थों की रक्षा जैसे कार्यों में वे सदैव आगे रहे हैं।
अग्रवाल-जाति की उत्पत्ति 'अग्रोहा' से मानी जाती है। 14वीं शताब्दी में होने वाले 'सधारू कवि' ने उक्त मन्तव्य का ही समर्थन किया है। अग्रोहा 'हरियाणा' प्रदेश के 'हिसार' प्रान्त में स्थित है। प्राचीनकाल में यह एक ऐतिहासिक नगर था। सन् 1939-40 में जब यहाँ के एक टीले की खुदाई हुई, तो उसमें तांबे के सिक्कों पर अंकित कर्ण, गज, वृषभ, मीन, सिंह, चैत्यवृक्ष आदि के जो चिह्न प्राप्त हुये हैं, उनको जैन-मान्यता की ओर स्पष्ट संकेत माना जाता है। सिक्कों के पीछे ब्राह्मी-लिपि अक्षरों में 'अगोदके अगद-जनपदस' अंकित है, जिसका अर्थ 'अग्रोदक' में 'अग्रद' जनपद का सिक्का होता है। अग्रोहे का नाम 'अग्रोदक' भी रहा है। 'एपिग्राफिका इंडिया, जिल्द 2, पृष्ठ 244' और 'इंडियन एन्टीक्वेरी, भाग 15, पृष्ट 343' पर अग्रोहक-वैश्यों का वर्णन किया हुआ है। जनश्रुति के अनुसार 'अग्रोहा' में 'अग्रसेन राजा' राज्य करता था। इसी से 'अग्रवाल' जाति का उद्भव हुआ, लेकिन इसके अभी तक कोई पोषक प्रमाण नहीं मिल सके हैं। कविवर बुलाखीचन्द ने अग्रवाल-जाति की उत्पत्ति ऋषि द्वारा मानी है , तथा लोहाचार्य द्वारा अग्रवालों को जैनधर्म में दीक्षित करना माना है। अग्रवालों के 18 गोत्र रहे हैं, जिनके नाम इसप्रकार हैं - गर्ग, गोयल, सिंघल, मुंगिल, तायल, तरल, कंसल, बछिल, एन, ढालण, चिन्तल, मित्तल, जिंदल, किंघल, हरहरा, कछिल, पुखन्या एवं बंसल।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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