________________
रहे हैं। जैन-समुदाय में जाति-प्रथा अब पूर्णतः जन्म-आधारित है; किन्तु इसका उदय विभिन्न कारणों से हुआ।
जैन-जातियाँ नाम-भर की ही जातियाँ नहीं है, बल्कि इनका आज भी भारी सामाजिक व सांस्कृतिक महत्त्व है। अनेक सामाजिक मसले इनकी जातीय-पंचायतों द्वारा निर्धारित होते हैं। किसी भी सामाजिक अपराधी को दण्डित करने का कार्य जैनों की जातीय-पंचायतें करती हैं। दिगम्बर जैन-समुदाय भारी संख्या में जातियों में बँटा हुआ है तथा इसकी प्रत्येक जाति की अपनी अलग पंचायत है, जो अपनी जाति के लोगों के जीवन को नियमित करती है। विभिन्न जातियों के नैतिक स्तरों में भी भारी भिन्नता व्याप्त है। उदाहरण के लिये उत्तर-भारत की अधिकांश जैन-जातियाँ विधवा-विवाह की आज्ञा नहीं देतीं, जबकि दक्षिण की जातियों में विधवा-विवाह आमतौर पर प्रचलित है। इतना ही नहीं, बल्कि प्रत्येक जाति में जन्म, विवाह एवं मृत्यु-सम्बन्धी आयोजनों में भी जातीय-आधारित भिन्नता है। श्रीमाली, अग्रवाल, परवार, सेतवाल एवं अन्य जातियाँ रीति-रिवाजों में भारी भिन्नता लिये हुये हैं। इनमें अपनी-अपनी जाति को सर्वोच्च मानने का मिथ्या अभिमान भी दिखाई देता है। अनेक जैन-जातियाँ जाति तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उस जाति के अन्दर भी बीसा, दस्सा आदि भेद भी व्याप्त हैं। दिगम्बर जैनों के 'तेरापंथ-समुदाय' की 6 जातियों में 'चारणगारे जाति' को अत्यधिक सम्मानजनक माना जाता है; क्योंकि इस जाति में अनेक धार्मिक विभूतियाँ व विद्वान् हस्तियाँ पैदा हुई हैं। इसीप्रकार हैदराबाद स्टेट के पूर्व निजाम के राज्य-क्षेत्र में 'पोरवाड़ों' की तुलना में 'सरावगियों' का अधिक सम्मान होता था तथा उन्हें सबसे ऊँचा माना जाता था। कर्नाटक के 'उत्तरी कनारा' जिले में जैनों के तीन विभाजन हैं, जिनमें क्रमशः चतुर्थ, तगारा-बोगरा एवं पुजारी शामिल हैं। यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अधिकांश जैन अपने आपको वैश्य-समुदाय (वणिक् या व्यापारी) का मानते हैं।
शूद्रों को वैदिक-परम्परा में अत्यधिक निम्न-स्थान प्राप्त था; जिन्हें धार्मिक ग्रन्थ पढ़ने का अधिकार नहीं था। मन्दिर-प्रवेश पर भी रोक थी, इसलिये हर वर्ग के लोग जैनधर्म की ओर आकर्षित हुये। जैन-सम्प्रदाय में ब्राह्मणों का भी महत्त्व नहीं है। जैनों में ब्राह्मणों के स्थान पर क्षत्रियों को प्रमुख स्थान प्राप्त है। ऐसा देखने को मिलता है कि जैनों की अनेक जातियों के नाम उनके उद्गम-स्थान के नाम पर है। उदाहरणार्थ श्रीमाल (वर्तमान भीनमाल) से श्रीमाली, ओसियाँ से ओसवाल, अग्रोहा से अग्रवाल, बघेरा से बघेरवाल, चित्तौड़ से चित्तौड़ा, खण्डेला से खण्डेलवाल इत्यादि।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
00117