________________
प्रकाशकीय
वर्तमान युग में वैज्ञानिक- संसाधनों ने मुद्रण के क्षेत्र में अभूतपूर्व - क्रान्ति का सृजन किया है। इसी कारण से आज प्रकाशनों की बाढ़ सी आ गई है। यद्यपि विषय की दृष्टि से तो पाठ्य सामग्री में विविधता एवं तुलनात्मक अंतर प्रारम्भकाल से ही थे; किन्तु आज व्यावसायिकता की सीमित दृष्टि ने विषयगत गरिमा को और अधिक संकुचित कर दिया है। भले ही संचार तकनीकी के क्षेत्र में आई अभूतपूर्व - क्रान्ति ने क्षेत्र की दूरियों को प्रायः समाप्त कर दिया हो; किन्तु विषयगत गुणवत्ता के बारे में स्तर प्रायः घटा ही है।
ऐसी परिस्थितियों में नैतिक मूल्यों एवं सांस्कृतिक - दार्शनिक-तत्त्वों का तथ्यपरक लोकोपयोगी प्रस्तुतीकरण करनेवाले साहित्य की उपलब्धता राष्ट्रीय, सामाजिक एवं वैयक्तिक-हितों की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक हो गई है। इन्हीं लक्ष्यों की पूर्ति के लिये 'ओम कोठारी फाउण्डेशन' के अन्तर्गत 'त्रिलोक उच्चस्तरीय अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान' की स्थापना की गई। इस संस्थान के अनेकों लोकहितकारी उद्देश्य हैं, जिनमें उपर्युक्त स्तर के शोधपरक प्रामाणिक साहित्य का प्रकाशन भी एक प्रमुख उद्देश्य है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये इस संस्थान ने अपनी स्थापना के प्रथम वर्ष में ही एक विश्व कीर्तिमान-निर्माता विद्वान् की श्रम - साधना से निर्मित महनीय कृति को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। जैन दर्शन, जैन- इतिहास एवं जैन- - समाजशास्त्र के क्षेत्र में उल्लेखनीय सामग्री का तथ्य - आधारित प्रस्तुतीकरण करने वाली इस कृति पर विश्वविख्यात जैन-संत आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने 'मंगल- आशीर्वचन' लिखकर इसकी गरिमा को कई गुना बढ़ा दिया है, अतः मैं पूज्य आचार्यश्री के चरणों में सविनय 'नमोऽस्तु' अर्पित करता हूँ। विद्वान् लेखक आदरणीय बाबूजी डॉ. त्रिलोक चन्द जी कोठारी के गहन तपस्या से यह कृति निर्मित है, अतः उनके प्रति मैं सादर वंदन करता हूँ। अल्पवयः में ही विद्वत्ता एवं वैज्ञानिक-संपादन के प्रतिमान बनानेवाले मनीषी डॉ. सुदीप जैन ने प्रभूत श्रमपूर्वक इसका वैज्ञानिक-संपादन किया है, अत: उनके प्रति भी मैं हृदय से आभारी हूँ। कोठारी समूह के समर्पित कार्यकर्त्ता श्री अनिल जैन ने इसकी व्यवस्था के लिये भरपूर श्रम किया, अतः उनका भी धन्यवाद करता हूँ। निर्दोष टंकण - व्यवस्था एवं नयनाभिराम मुद्रण के लिये संबद्ध संस्थानों का भी मैं धन्यवाद व्यक्त करता हूँ। आशा है विद्वानों एवं समाज के जिज्ञासुजनों के लिये यह कृति उपयोगी सिद्ध होगी ।
00 x
- सी. पी. कोठारी
मैनेजिंग ट्रस्टी, ओम कोठारी फाउण्डेशन
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ