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विद्वानों में पण्डित भागचन्द जी की गणना है। ये संस्कृत और प्राकृत-भाषा के साथ हिन्दी-भाषा के भी मर्मज्ञ विद्वान् थे। ग्वालियर के अन्तर्गत ईसागढ़ के निवासी थे। इनकी जाति ओसवाल और धर्म दिगम्बर जैन था। कवि की निम्नलिखित रचनायें उपलब्ध होती हैं - महावीराष्टक (संस्कृत), अमितगतिश्रावकाचार वचनिका, उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला वचनिका, प्रमाणपरीक्षा-वचनिका, नेमिनाथपुराण, ज्ञानसूर्योदय नाटक वचनिका, एवं पदसंग्रह। कवि बुधजन
इनका पूरा नाम 'वृद्धिचन्द' था। ये जयपुर के निवासी और खण्डेवाल जैन थे। इनका समय अनुमानतः 19वीं शताब्दी का मध्यभाग है। अभी तक इनकी निम्नलिखित रचनायें उपलब्ध हैं -- तत्त्वार्थबोध, योगसारभाषा, पंचास्तिकाय, बुधजनसतसई, बुधजनविलास, एवं पद-संग्रह। कवि वृन्दावनदास
कवि वृन्दावन का जन्म शाहाबाद जिले के 'वारा' नामक गाँव में सं. 1842 में हुआ था। ये गोयल-गोत्रीय अग्रवाल थे। कवि के वंशधर 'वारा' छोड़कर काशी में आकर रहने लगे। कवि के पिता नाम 'धर्मचन्द्र' था। कवि वृन्दावन की निम्नलिखित रचनायें प्राप्त हैं – प्रवचनसार, तीस-चौबीसी पाठ, चौबीसी पाठ, छन्द-शतक, अर्हत्पासाकेवली, एवं वृन्दावन-विलास।
इसप्रकार अनेकों आचार्य एवं मनीषी जैनधर्म और दर्शन की परम्परा को सुदीर्घ-काल तक समृद्ध करते रहे, और उन सबके योगदान के कारण जैनधर्म एवं दर्शन सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और इतिहास में न केवल अपनी मौलिक-पहचान बना सका है; अपितु इनके विकास में उसकी महनीय भूमिका रही है।
सन्दर्भ-विवरणिका तिलोयपण्णत्ती, 1/77-81. हरिवंशपुराण, 1/56-57. दंसणपाहुड, गाथा 17. उपासकाध्ययन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन. पद्य 100. आ समंतभद्र आप्तमीमांसा, कारिका 105. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 468. द्रष्टव्य, तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा, भाग 2, पृष्ठ 10-20.
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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