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कवि हरिषेण
हरिषेण मेवाड़ में स्थिति चित्रकूट (चित्तौड़) के निवासी थे। इनका वंश 'धक्कड़ या 'धरकट' था। इनके पिता का नाम 'गोवर्द्धन' और माता का नाम 'गुणवती' था। ये किसी कारणवश चित्रकूट छोड़ अचलपुर में रहने लगे थे। 'धर्म-परीक्षा' ग्रंथ में कवि ने ब्राह्मण-धर्म पर व्यंग्य किया है। कवि हरिषेण का समय वि. सं. की 11वीं शती है। वीर कवि
कवि वीर का जन्म मालवा देश के 'गुखखेउ' नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता 'लाडबागड' गोत्र के 'महाकवि देवदत्त' थे, जो कि स्वयं भी अपभ्रंश के ख्यातिप्राप्त कवि थे। कवि की चार पत्नियाँ थीं - 1. जिनमति, 2. पद्मावती, 3. लीलावती, एवं 4. जयादेवी। इनका समय विक्रम की 11वीं शताब्दी हैं कवि श्रीधर प्रथम
कवि अग्रवाल-कुल में उत्पन्न हुये थे। इनकी माता का नाम 'वील्हादेवी' और पिता का नाम 'बुधगोल्ह' था। कवि को नट्टल साहू ने 'पासणाहचरिउ' को लिखने की प्रेरणा दी थी। श्रीधर प्रथम या विवुध श्रीधर का समय विक्रम की 11वीं शती निश्चित है। कवि विवुध श्रीधर की दो रचनायें निश्चितरूप से मानी जा सकती हैं - 1. पासणाहरिउ, और 2. वड्ढमाणचरिउ, जिनमें से कवि की 'पासणाहचरिउ' उपलब्ध है। ये दोनों ही रचनायें पौराणिक महाकाव्य हैं। कवि देवसेन
कवि देवसेन मुनि हैं। वे निवडिदेव के प्रशिष्य और विमलसेन गणधर के शिष्य थे। देवसेन का व्यक्तित्व आत्माराधक, तपस्वी और जितेन्द्रिय साधक का है। उन्होंने सुलोचना के चरित को 'मम्मल' राजा की नगरी में निवास करते हुये लिखा है। कवि देवसेन का समय वि. सं. 1132 ठीक प्रतीत होता है। कवि मुनि कनकामर
कवि मुनि कनकामर के गुरु का नाम 'पंडित' या 'बुधमंगलदेव' है। वे ब्राह्मणवंश के चन्द्रऋषिगोत्रीय थे। जब विरक्त होकर वे दिगम्बर-मुनि हो गये, तो उनका नाम 'कनकामर' प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने अपने को 'बुधमंगलदेव' का शिष्य कहा है। मुनि कनकामर का समय विक्रम की 12वीं शताब्दी है।56 इनकी रचना 'करकंडुचरिउ' 10 सन्धियों में विभक्त हैं, इसमें करकण्डु महाराज की कथा वर्णित है। महाकवि सिंह
महाकवि सिंह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देशीभाषा के प्रकाण्ड विद्वान् थे।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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