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अलबेली आम्रपाली
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"महाराज ! मैंने तो सुना था प्राचीनकाल में धनुर्विद्या के साथ मंत्रशक्ति भी जुड़ी हुई थी । "
"हां! आज भी हम उस दिव्य शक्ति के धारक हैं । प्राचीनकाल में दिव्य शक्ति के आधार पर एक बाण से हजारों बाणों का सृजन किया जाता था । पर मैं आज एक बाण से तीन सौ बाण निकाल सकता हूं । इसके अतिरिक्त धनुर्विद्या संबंधी और भी अनेक रहस्य हमें प्राप्त हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो हम इस प्रदेश मेंटिक नहीं पाते। मेरा एक सैनिक हजार सैनिकों के साथ निर्भयतापूर्वक लड़ने में समर्थ है।"
यह सब सुनकर बिंबिसार आश्चर्यचकित रह गया। वह कुछ नहीं बोला । " मित्र ! जिस खजाने का हम हजार वर्षों से संरक्षण करते आ रहे हैं, उसको पाने के लिए इसी वन- प्रदेश के पड़ोसी राजा ने एक बार हम पर आक्रमण किया था ।"
"पड़ोसी राजा ने ? वह दुर्भागी कौन था ?”
" मगधपति प्रसेनजित ! किन्तु हमारे सैनिकों ने महाराज के सैनिकों की खूब धुलाई कर भगा डाला था। फिर मालव प्रदेश के राजा ने भी आक्रमण किया, किन्तु उसे भी मुंह की खानी पड़ी । उसको हमने ऐसी शिक्षा दी कि वह फिर कभी इस ओर नजर भी नहीं डालेगा । यह सारा हमारी धनुविद्या का चमत्कार था ।"
बिंबिसार कुछ कहे उससे पूर्व ही एक हृदय विदारक चीख सुनाई दी ।
उसी क्षण शंबुक ने अपना धनुष्य संभाला और तूणीर से एक बाण उस पर चढ़ाया । दूसरे अंगरक्षकों ने भी अपने-अपने धनुष्य संभाल लिये ।
शंबुक बोला - " मित्र ! घबराना मत। लगता है किसी वराह ने हमें देख लिया है ।'
बिंबिसार ने चारों ओर देखा, पर कुछ भी नजर नहीं आया । वन सघन
था ।
और इतने में ही दूर से किसी के पदचाप सुनाई दिए । और उसी क्षण शंबुक ने बाण छोड़ा |
बिंबिसार को यह अटपटा-सा लगा । कहीं कुछ दिखाई नहीं पड़ता है, और न जाने बाण कहां जाकर गिरेगा ?
किन्तु एक ही क्षण पश्चात् भयंकर चीख सुनाई दी । शंबुक बोल पड़ा" मित्र ! मेरा शब्दवेधी बाण वराह के शरीर में घुस गया है ।" इतना कहकर उसने अपने अंगरक्षकों को इसकी खोज करने का आदेश दिया ।
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दोनों अंगरक्षक अपने-अपने घोड़ों से नीचे उतरे और जिस दिशा में शंबुक ने बाण छोड़ा था, उसी दिशा में आगे बढ़े ।