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अलबेली आम्रपाली ३३
थी। उसका रूप और लावण्य लाख गुना प्रकट हो रहा था। वह स्वर्ण रप में बैठ गई। दो परिचारिकाएं दोनों ओर से चंवर डुलाने लगीं।
लोगों ने देखा। रूप और लावण्य से उनकी आंखें चुंधिया गयीं। उनका उत्साह सतगुणित हो गया।
वे पुकार उठे... "जनपदकल्याणी की जय ।" "वैशाली की जय।" "आम्रपाली की जय ।"
आम्रपाली जनपदकल्याणी के रूप में प्रतिष्ठित हो गई थी। बाज बैसाख महीने का तीसरा दिन था।
शोभायात्रा नियत स्थानों से गुजरती हुई सप्तभौम प्रासाद पर जा पहुंची।
आम्रपाली ने अपने निवास स्थान में प्रवेश किया। उसे लगा कि यह सप्तभौम प्रासाद देवरमणीय और सुन्दरतम है। __ कल रात तक आम्रपाली महानाम की पुत्री थी। वैशाली की वह लाडली कन्या थी । आज यह जनपदकल्याणी बन गई थी।
हजारों लोग वहां आने-जाने लगे।
कल रात तक आम्रपाली के हास्य को देखना अशोभन माना जाता था। आज उसके हास्य झेलने के लिए हजारों रंगीले पुरुष आ-जा रहे थे। आने वाले कुछ लोगों में कोई उसके हाथ से मदिरा पीने की याचना करेगा कोई नयनकटाक्ष से घायल होना सौभाग्य मानेगा, कोई नृत्य के प्रकार में डूब जाना चाहेगा, कोई एक गीत सुनने के लिए पागल होगा और कोई आम्रपाली के मदभरे यौवन से प्यास बुझाने के लिए आकुल-व्याकुल होगा। कैसी पंचरंगी दुनिया के बीच अब आम्रपाली को रहना होगा!
शिशिरा और माधविका--ये दो परिचारिकाएं आम्रपाली की विशेष कृपापात्र थीं।
रात का पहला प्रहर।
शिशिरा ने आकर देवी को सूचना दी--"देवि ! महाबलाधिकृत के पत्र महाराज कुमार श्री पद्मकेतु आए हैं।"
"क्यों ?" देवी ने पूछा। "कोई महत्त्व की बात करना चाहते हैं।" "अच्छा, क्या वे नवजवान हैं ?" "हां, देवि !...।"
"समझ गई। नवयुवकों के मन में क्या महत्त्व की बात होती है, तू नहीं जानती । अच्छा, तूजा उन्हें यहां ले आ । मैं भोजन से निवृत्त होकर आती हूं।"