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३०४ अलबेली आम्रपाली
बिबिसार ने हंसते-हंसते कहा-"वर्षाकार ! तू मेरा बाल साथी है । मैं तेरी भावनाओं को समझता हैं। किन्तु हमारी संस्कृति इतनी कमजोर नहीं है कि वह सामान्य आघातों से कांप उठे। तू भय मत रख । अभी मुझे सत्ता में आए दो वर्ष ही हुए हैं । तूने स्वयं देखा होगा कि मैंने इन दो वर्षों में वीणा को छुआ भी नहीं है। कभी किसी नर्तकी के नखरों की ओर देखा तक नहीं । अन्तःपर के भवनों में निरन्तर प्रतीक्षारत नवयौवना पत्नियों के साथ चार-छह राते बिताई नहीं। मित्र ! तेरे हृदय में जो भावना है उसे में जानता हूं'. 'तेरी भावना को साकार करने के लिए मैं प्राणों को भी न्यौछावर कर दूंगा' 'किन्तु हमें समय और संयोगों की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।"
तीक्ष्ण बुद्धिवाला वर्षाकार बिबिसार के मन में वैशाली के प्रति जो ममता थी, उसे पंगु बनाना चाहता था। इसलिए वह विविध उपायों से वैशाली के प्रति घृणा पैदा करने का प्रयास कर रहा था। ___ एक बार बिंबिसार ने वैशाली जाने का विचार किया, किन्तु वह जानता था कि वर्षाकार इस बात से सहमत नहीं होगा। इसलिए उसने अपने अंगरक्षक के रूप में नियुक्त धनंजय से कहा-"धनंजय ! हम दोनों गुप्त वेश में कुछ दिनों तक बाहर निकलें, ऐसी इच्छा है।"
"गुप्त वेश में ?" "हां, यहां किसी को पता नहीं लगना चाहिए।" "उज्जयिनी जाना है ?" • "नहीं, वहां नहीं जाया जा सकता। कौशलनंदिनी के प्रति चंडप्रद्योत के हृदय में आग धधक रही है। और उज्जयिनी इतनी दूर है कि हम इतने दिन।"
"तो...?"
"वैशाली जाना है। चौंकता क्यों है ? मेरी दोनों प्रियतमाएं वहां हैं..." बिबिसार ने कहा।
"नंदा देवी भी वहीं हैं ?"
"नहीं...। उसके तो कोई समाचार ही नहीं मिले। प्रसूति का परिणाम क्या आया, पुत्र हुआ या पुत्री, यह भी किसी ने ज्ञात नहीं कराया। संभव है प्रसूति काल में कुछ अघटित घटना हुई है । माता और बालक दोनों की मौत हो गई हो। इस प्रसंग में ही कभी खोज कराऊंगा । वैशाली में देवी आम्रपाली और मेरी प्रिय महाबिब वीणा है । ये दोनों मेरी प्रियतमाएं हैं। आम्रपाली के भवन का त्याग किए तीन वर्ष बीत चुके हैं । मेरे संदेशों का कोई उत्तर नहीं मिल रहा है। संभव है देवी को कुछ पीड़ा हुई हो। मुझे उससे मिलकर उसका मन जानना चाहिए। और..."
"और क्या महाराज ?"