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अलबेली आम्रपाली ३०१
कल तक जो धनदत्त सेठ के यहां स्वर्ण निर्माण कर उसी के भवन से रहता था, वही श्रेणिक पूर्व भारत के एक विशाल साम्राज्य का भाग्य-विधाता बन गया।
श्रेणिक के प्रति जनता के मन में ममता और आदर-भावना थी। जनता अत्यन्त हर्षित इसलिए थी कि उसे मनोवांछित मगध का अधिपति प्राप्त हुआ था।
श्रेणिक को मगधेश्वर के रूप में विधिवत् प्रतिष्ठित करने का शुभ मुहूर्त तीन महीने बाद था। इसके निमित्त विविध राज्यों में निमंत्रण भी भेजे जा चुके थे। और पूर्व तैयारियां भी प्रारम्भ कर दी गयी थीं।
वहां की परम्परागत विधि यह थी कि सिंहासन पर प्रतिष्ठित होते समय मगधेश्वर साम्राज्ञी सहित प्रतिष्ठित होते हैं । इसलिए बिंबिसार के विवाह आदि के विषय में चर्चाएं होने लगीं। राजमाता त्रैलोक्यसुन्दरी ने यह बात बिंबिसार को कही, तब वह चौंका और उस समय उसे आम्रपाली और नंदा-दोनों की स्मृति हो आयी। यह बात उसने किसी से नहीं कही थी। केवल वर्षाकार को आम्रपाली के विषय में अवश्य बताया था। __ परन्तु वैशाली की जनपदकल्यानी मगध की साम्राज्ञी बने, यह शोभास्पद नहीं है । ऐसा वर्षाकार मानता था । और राजपरिवार का यह अभिप्राय था कि साम्राज्ञी के पद पर कोई उत्तम, कुलीन राजकन्या ही प्रतिष्ठित होनी चाहिए।
बिबिसार को अपनी कन्या देने के लिए अंग-बंग, कलिंग, काशी, गांधार, कौशल आदि जनपदों के राजाओं ने कहलाया था। और रानी त्रैलोक्यसुन्दरी ने कौशल देश के महाप्रतापी राजा प्रसेनजित की कन्या को पसन्द किया था और ऐसे भी कौशल और मगध दोनों देश पारिवारिक सम्बन्धों से भी बंधे हुए थे।
वर्षाकार भी यही चाहता था। उसका स्वप्न था कि समग्र भारत में एक चक्र साम्राज्य स्थापित कर आर्य संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने वाली शक्तियों को नेस्तनाबूद कर आर्य संस्कारों की पुनः प्रतिष्ठा करनी चाहिए। कौशल नरेश की कन्या यदि साम्राज्ञी बनती है तो यह स्वप्न सहज सिद्ध हो जाता है। उसने बिबिसार से इस प्रसंग में बातचीत की। बिबिसार ने कहा-"महामंत्री ! मेरी भावना है कि देवी आम्रपाली को इस पद पर लाना चाहिए।" ___ "कृपावतार ! देवी आम्रपाली का पद-गौरव क्या है ? आप तो जानते ही हैं कि जनपदकल्याणी का अर्थ क्या होता है ? वह जीवन-सखी बन सकी है पर वह मगध की साम्राज्ञी नहीं बन सकती। और उसके एक पुत्री भी है। यदि आप अपना यह भाव किसी के समक्ष प्रकट करेंगे तो कड़ा विरोध होगा और मगध साम्राज्य के विषय में हमारी जो कल्पना है, वह मात्र स्वप्न-तरंग बनकर रह जाएगी।"
बिंबिसार ने बहुत चर्चा की। उसे वर्षाकार की बात माननी ही पड़ी।