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अलबेली आम्रपाली २६९
महाराजा चंडप्रद्योत ने भी धनदत्त सेठ के यहां बधाई के रूप में एक स्वर्ण की माला और मखमल का वस्त्र भेजा ।
यात्री की सलाह से भोजन की व्यवस्था की गई। प्रतिदिन शतपाक तेल का मर्दन माता और शिशु को होता था । आरण्य उपलों का परिषेक व्यवस्थित रूप में होता था । गर्भाशय में कोई दोष उत्पन्न न हो, इसलिए विविध द्रव्यों से बनी औषधि का धुआं संध्या समय में दिया जाता था ।
धनदत्त सेठ ने पुत्र-जन्म का समाचार बिबिसार को देना चाहा था । परन्तु नंदा ने इनकार कर दिया था । नारी सुलभ अभिमान इसके अन्तःकरण में जाग उठा था. इतना समय बीत जाने पर भी सकुशल पहुंचने के समाचार अपनी पत्नी को देने जितना समय भी नहीं मिला ?
नारी भूल नहीं सकती । उसकी स्मृति प्रखर होती है ।
पुरुष का चंचल मन बड़ी बातों को भी भूल जाता है ।
सवा महीना बीता । नंदा ने प्रसूतिगृह का त्याग कर दिया।
उज्जयिनी के प्रख्यात ज्योतिषी को बुला धनदत्त सेठ ने अपने दौहित्र के नामकरण तथा जन्माक्षर करने की प्रार्थना की।
ज्योतिषी ने मुहूर्त्त देखा । दो दिन बाद नामकरण का मुहूर्त्त था। नंदा के
पुत्र का नाम अजभकुमार रखा गया ।
ज्योतिषी ने अभयकुमार के ग्रह-योग आदि का भविष्य एक ताडपत्र पर अंकित कर धनदत्त सेठ को सौंपा। उसने कहा - "सेठजी ! यह बालक सामान्य नहीं है । यह कोई भव्य आत्मा है । इसके ग्रह अत्यन्त तेजस्वी, उत्तम और अचंचल हैं । यह बालक भविष्य में बुद्धि का सम्राट होगा । इसके ग्रहों की ऐसी युति है कि यह महापुरुष बनेगा। या तो यह राजराजेश्वर चक्रवर्ती होगा अथवा उससे भी महान् सन्त बनेगा ।
पुत्र के भविष्य की बात सुनती हुई नंदा ने प्रश्न किया- "पूज्यश्री ! अभय अपने पिता से कब मिलेगा ?"
ज्योतिषी ने गणित कर बताया- " पुत्रि ! पिता का मिलन अवश्य होगा पर अभी नहीं सोलह वर्ष बाद ।"
यह सुनकर मानों नंदा का हृदय दग्ध हो गया, फिर भी वह प्रसन्न भाव में रही। वह समझ गयी कि जब पुत्र का मिलन सोलह वर्ष बाद होगा तो पत्नी का मिलन उससे पूर्व संभावित नहीं है ।
परन्तु जिसके मन में जैनत्व के संस्कार हैं, वह ऐसे प्रसंगों पर बहुत दुःखी नहीं होता । वह धैर्य रखता है और कर्मफल को शांतभाव से भोगता है ।
राजगृही पहुंचने के बाद बिंबिसार अपने प्रीति पात्रों को भी याद नहीं कर सका । कारण पिताजी की बीमारी राजकार्य की व्यस्तता महामंत्री का