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अलबेली आम्रपाली २६५
सका। नंदा प्रतिपल पलकें बिछाए संदेश की प्रतीक्षा कर रही थी । पर संदेश प्राप्त नहीं हुआ। बिंबिसार के मन में नंदा की स्मृति यदा-कदा होती, पर व्यस्तता के कारण वह संदेश भेज नहीं सका ।
उज्जयिनी से प्रस्थान करने के बाद बिंबिसार ने आम्रपाली को एक संदेश भेजा था। वह संदेशवाहक भी वैशाली से लौट आया था ।
रात के दूसरे प्रहर में श्रेणिक ने उसे बुलाकर पूछा - " देवी कुशल तो है
न ?"
"हां, महाराज !"
" देवी ने कोई संदेश दिया हो तो वह
।”
महाराज देवी ने कोई संदेश नहीं दिया। उनकी मुख्य दासी ने मुझसे कहा"अभी देवी बहुत व्यस्त हैं, वे बाद में किसी अपने व्यक्ति के हाथ संदेश भेज देंगी ।"
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"अच्छा!" कहकर बिबिसार कुछ सोचने लग गया ।
पन्द्रह दिन और बीत गये । आम्रपाली का कोई संदेश नहीं आया । स्वयं ने भी आम्रपाली या नंदा को कोई संदेश नहीं भेजा ।
क्योंकि महामंत्री ने मगधेश्वर से विचार-विमर्श कर बिंबिसार श्रेणिक को राज्य के कार्यों में व्याप्त करने की बात निश्चित कर ली थी। और पिताजी की आज्ञा प्राप्त कर श्रेणिक अब राज्य कार्य में व्यस्त रहने लगा । राजदरबार में जाना, न्याय के प्रश्न सोचना, मंत्रियों के साथ मंत्रणा करना, सीमाओं की कूटनीति समझना, लोगों की शिकायतें सुनना, उनका निराकरण करना शत्रुराजाओं के प्रश्नों की विचारणा करना आदि-आदि कार्यों की अधिकता के कारण बिंबिसार न आम्रपाली की ही स्मृति कर पाता था, और न ही नंदा याद आती थी । वह अपनी जीवनसंगिनी वीणा को भी नहीं बजा पा रहा था ।
और दो मास बीत गए ।
महामंत्री बीमार हो गए। उनकी ही प्रेरणा से कुछ समय के लिए वर्षाकार को महामंत्री के कार्यों में व्याप्त कर डाला । वर्षाकार युवक था, बुद्धि में तेज था और श्रेणिण का बाल साथी भी था। दोनों में मेल-जोल बहुत था ।
एक रात्रि में दोनों मित्र मगध के भविष्य के बारे में चर्चा कर रहे थे । उस समय वर्षाकार ने कहा - "युवराजश्री ! मगध की शक्ति अपार है। किन्तु उस शक्ति का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं हो रहा है। साथ ही शक्ति को रौंद देने वाली शक्ति भी मुझे दीख रही है ।"
"कौन-सी शक्ति ?"
"वैशाली का गणतंत्र ! मगधेश्वर वैशाली को नष्ट-भ्रष्ट करने का स्वप्न