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अलबेली आम्रपाली २८९
हं कि वे शतायु हों, किन्तु बीमारी का क्या परिणाम आए और मुझे कितने समय तक रुकना पड़े, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। पिताजी यदि औषधि-प्रयोग से स्वस्थ हो जाएंगे तो तत्काल लौट आऊंगा और।"
"क्या ?" "यदि वे स्वर्गगामी हो गए तो नहीं कह सकता, मैं कव लौटंगा?' "आपके अन्य भाई ?"
"अनेक हैं। मेरे से बड़े भी हैं । किन्तु पिताजी को किसी पर विश्वास नहीं है। पिताजी की इच्छा को मैं जानता हूं । वे मुझे ही मगध का सिंहासन सौंपना चाहते हैं। यदि ऐसा कुछ हुआ तो तुझे मगध की साम्राज्ञी के रूप में आना पड़ेगा...
"स्वामी।"
"मैं सत्य कहता हूं। यदि तू पुत्र का प्रसव करेगी तो वह मगध का प्रथम युवराज होगा।"
"प्रियतम ! साम्राज्ञी के रूप में आने से तो आपकी दासी बनकर आना श्रेयस्कर होगा। परन्तु जैसा आप कह रहे हैं यदि वैसा होगा तो आप लौटकर कैसे आ पाएंगे?"
"हां, प्रिये ! यदि ऐसा होगा तो मैं तुझे मगध की महादेवी के उपयुक्त गौरव से बुला लूंगा।"
"यदि आप भूल जाएंगे तो?" "क्या मेरा हृदय तेरे से अज्ञात रहा है ?"
"स्वामिन् ! संसार के नर-नारी एक-दूसरे के हृदय को पढ़ नहीं सकते। पढ़ना अशक्य है।"
"श्रद्धा, विश्वास, वचन ''इनका...?"
"मैं आप पर आक्षेप नहीं करती 'कर भी नहीं सकती, क्योंकि आप मेरे सर्वस्व हैं । अपने सर्वस्व पर अश्रद्धा या अविश्वास कैसे हो? मैंने तो एक सहज बात कही है। हृदय पर केवल आत्मा का आधिपत्य नहीं होता।"
बिंबिसार ने हंसते-हंसते पूछा-"तो?"
"मन का भी आधिपत्य होता है । हृदय के आसन पर जब मन बैठता है तब जीवन के निश्चित बने हुए सत्य बिखर जाते हैं।" _ "प्रिये ! तेरी बात सही है। परन्तु मेरे हृदय पर न आत्मा का आधिपत्य है और न मन का। वहां तो केवल तेरा ही आधिपत्य है । तू ही मेरे मन की, जीवन की और कामनाओं की स्वामिनी है। इससे और अधिक ...?"
नंदा बोली- "मुझे विश्वास है । मैंने तो मन की चंचलतावश यह बात कह दी। आपको कर्तव्य मार्ग से रोकना मैं नहीं चाहती।"
"तेरे मन की पवित्रता और उदारता को क्या मैं नहीं जानता?"