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२८६ मलबेली आम्रपाली
"हां, महाराज !" "फिर भी तूने मुझे इसका संकेत नहीं दिया, क्यों ?"
"महाराज ! मगध के कल्याण के लिए ही मुझे यह सब गुप्त रखना पड़ा। मैं जानता हूं कि समय के परिपाक के पहले कहा हुआ रहस्य अनर्थ घटित कर सकता है। मुख्य जो हेतु था वह केवल मगधेश्वर, महामंत्री और मैं—ये तीन व्यक्ति ही जानते थे।"
बिबिसार ने खड़े होकर धनंजय के कंधों पर हाथ रखकर कहा-"धनंजय ! तेरी यह वफादारी मुझे सदा याद रहेगी। परन्तु ?"
"क्या महाराज ?"
"यहां से प्रस्थान करना बहुत कठिन है। धनदत्त सेठ सम्भव है आज्ञा दे दें, परन्तु..."
बीच में ही धनंजय बोल उठा-"स्वामी ! मार्ग में आपने मुझे कहा था कि देवी नंदा अपूर्व बुद्धिमती है, और वह अवश्य प्रस्थान के लिए सहमति दे देगी। परन्तु यदि वे प्रेमवश आज्ञा न दें तो भी आपको अपना कर्त्तव्य नहीं भूलना चाहिए। वहां रानी त्रैलोक्यसुन्दरी एक दूसरा पड्यंत्र भी कर रही हैं।" ___मैं समझा नहीं।" ___ "महारानी गर्भवती होने के लिए औषधोपचार कर रही हैं। वह अपने को गर्भवती घोषित करें, उससे पूर्व ही मगधेश्वर शय्या-परवश हो गए और रानी की आशा वैसी की वैसी रह गई।"
"अच्छा", कहकर बिबिसार ने पत्र पुनः स्वर्ण नलिका में रखा और कहा, "धनंजय ! तू यहीं रह । हम कल या परसों यहां से प्रस्थान कर सकेंगे । मुझे सेठजी को समझाना पड़ेगा। नंदा तो अवश्य ही समझ जाएगी।"
बिबिसार कुछ देर वहां रुककर रथ में बैठ भवन की ओर चला गया। उसके प्राणों में पिता के प्रति भक्ति थी' 'ऐसी अवस्था में पिता की सेवा करना परम कर्तव्य है, ऐसा वह मानता था।
५६. प्रेम और कर्तव्य भवन में आने के बाद बिबिसार पत्नी से मिलने न जाकर सीधा दुकान पर गया और धनदत्त सेठ से बोला- “सेठजी आपसे कुछ काम है।"
धनदत्त सेठ को आश्चर्य हुआ। इतने दिनों में बिंबिसार ने कभी भी इस प्रकार गम्भीर बनकर बात नहीं की थी।
सेठ ने पूछा-"क्या स्वर्ण-निर्माण में कोई कठिनाई आयी है ?"
"नहीं । परन्तु आज राजगृही से मेरे नाम पर एक विशेष सन्देश आया है। मेरे पिताश्री बहुत बीमार हैं और मुझे तत्काल जाना पड़े, ऐसा प्रतीत होता है।