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अलबेली आम्रपाली २७१
नहीं हो सकता । वे ऐसे तो हैं नहीं। तो फिर उनका संदेश क्यों नहीं मिला ? क्या वे कहीं स्थिर होकर गौरवपूर्ण तरीके से मुझे ले जाएंगे ?
ओह ! ज्योतिषी तो बहुत स्पष्ट बताते हैं कि वियोग काल बहुत दीर्घ होगा । उनके द्वारा कथित भविष्यफल का पूर्वार्द्ध यदि सही निकला है तो उसका उत्तरार्द्ध सही क्यों नहीं होगा ?
इस प्रकार एकाध सप्ताह के बाद उसने एक पत्र लिखा और अपने एक सैनिक के साथ उसे उज्जयिनी रवाना किया ।
प्रसूतिकाल के सत्तर दिवस बीत चुके थे । आम्रपाली पूर्ण स्वस्थ थी । उसका आरोग्य इतना सुन्दर और अपूर्व था कि देखने वाले को नहीं लगता या कि आम्रपाली ने किसी सन्तान का प्रसव किया है। ऐसा ही लगता था कि यह पुरुष से सर्वथा असंपृक्त रही है। यह नवोढ़ा है, खिलते योवन की बहार है।
आम्रपाली ने अपनी सुन्दर कन्या का नाम पद्मसुन्दरी रखा था ।
छोटी कन्या कमल जैसी कोमल और सुन्दर थी। वह नयन- मनोहर थी । धायमाता बार-बार कहती - "देवि ! यह कन्या जब षोडशी होगी तब आपसे भी बढ़कर होगी ।"
सत्तर दिन बीतने के बाद माध्विका ने देवी से कहा- "महादेवी ! अब मात्र बीस दिन ही रहे हैं। यदि आप नहीं समझेंगी तो परिणाम बुरा होगा। जिस प्रिय कन्या को देखने के लिए अन्तर में प्रेम उमड़ रहा है उस कन्या को आप जीवन भर नहीं देख पाएंगी। इसलिए आप दुराग्रह को छोड़कर ज्योतिषी के कथन के प्रति श्रद्धा रखें।
"माधु ! मैं सब समझती हूं । परन्तु यह केवल मेरी ही सम्पत्ति नहीं है, यह स्वामी की एक मीठी स्मृति भी है ।"
"यह सब कुछ है । पर विवेक से काम लेना है । आप कल्पना तो करें अंधी बन जाने के बाद आप क्या देख पाएंगी ? अपने स्वामी को भी कैसे देख सकेंगी ?" " तो अब क्या करना चाहिए ?"
"इस प्रसंग में मैंने आपसे कह दिया है। तारिका उत्तम और वफादार है । आप स्वयं उसी के हाथों में बड़ी हुई हैं । कन्या को उसे सौंपकर उसे अन्यत्र भेज दें । तारिका इस कन्या को अपने प्राणों से अधिक समझेगी । आप उसे पर्याप्त धन भी दें, जिससे कि कन्या का लालन-पालन उचित ढंग से हो सके । "
आम्रपाली सोचने लगी ।
चार-छह दिन बाद |
आम्रपाली ने स्वयं तारिका को बुला भेजा और उसको अपनी प्रिय कन्या पद्मसुन्दरी के साथ अन्यत्र विदा कर दिया ।