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अलबेली आम्रपाली २६७
व्यथा उसके प्राणों को मथ रही थी । परन्तु आश्विन पूर्णिमा को उस व्यथा का सदा-सदा के लिए अन्त हो गया ।
इस प्रयोगकरण में कादंबिनी को अनेक विध कठोर, कठोरतम प्रयोगों से गुजरना पड़ा था. बीस दिन तक केवल 'श्रुतिशीत' जल पर रहना पड़ा था अनेक दिनों तक वनस्पतियों के योग से सिद्ध किए गए दूध और मूंग के यूष पर रहना पड़ा था । इस काल में कादंबिनी ने कभी भी अन्यमनस्कता नहीं दिखाई थी । वह जानती थी कि शरीर के रोम-रोम में व्याप्त विष को नष्ट करना सहजसरल नहीं है ।
कादंबिनी को विषमुक्त करने के पश्चात् गोपालस्वामी ने कादंबिनी को एक मास तक आश्रम में ही रहने के लिए कहा, क्योंकि उसमें नये रक्त का संचार करना था, कुम्हलाए यौवन को जीवंत करना था और प्रयोग काल में प्राप्त निर्बलता को मिटाना था ।
आचार्य ने कादंबिनी पर बृंहण क्रिया प्रारम्भ की। कादंबिनी ने आचार्य के चरणों में मस्तक नमाकर कहा - "गुरुदेव ! मैं आपका उपकार "।"
बीच में ही आचार्य बोले -- "पुत्रि ! उपकार तो तूने किया है यदि तू यहां नहीं आती तो विषमुक्ति का प्रयोग करने का अवसर नहीं मिलता । विषकन्या का निर्माण करने वाले महान् प्रयोगकार यही मानते हैं कि इस प्रयोग का कोई निवारण नहीं है । परन्तु मैं इस मान्यता का सदा विरोधी रहा हूं । सर्जन होता है तो उसका विसर्जन भी हो सकता है । मेरी इस दृढ़ मान्यता को तेरे से बल मिला है और मेरा विज्ञान सफल हुआ है ।
"पुत्रि ! तुझे विषमुक्त करते समय मुझे यह विश्वास था कि तेरा सर्जन किसी परिवार की कुलवधू होने के लिए ही हुआ है । मेरे मन में एक विचार भी आया है | यदि तेरी इच्छा होगी तो मैं तेरा पिता बनकर कर्त्तव्य पूरा करूंगा ।"
hari fart कुछ समझी नहीं । वह प्रश्नभरी दृष्टि से आचार्य की ओर देखती
रही ।
आचार्य ने कहा - "कादंबिनी ! तूने आर्य सुमंत को देखा है ?" "हां"..।”
"आर्य सुमंत एक स्वस्थ तरुण है सफल वैद्य है. दक्षिणापथ का निवासी है मेरा मन है कि तू उसकी धर्मपत्नी होने योग्य है ।"
कादंबिनी सलज्ज नयनों से नीचे देखती रही ।
"छह माह बाद वह अपने देश जाएगा। मुझे उसके प्रति पूर्ण श्रद्धा है । मेरा विश्वास है कि वह एक निष्ठावान् वैद्य बनेगा और दक्षिणापथ में उसको यश और कीर्ति - दोनों प्राप्त होंगे ।"