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२६४ अलबेली आम्रपाली
महाराज चंद्रप्रद्योत सिंधु- सौवीर से अभी यहां आए नहीं थे। दस-बारह दिनों में आने की बात थी । परन्तु राज्य के महामंत्री ने धनदत्त सेठ को राज्य की ओर से जो चाहा वह दिया। सभी राज्याधिकारी विवाह में सम्मिलित हुए ।
अपनी एकमात्र कन्या के विवाह में सेठ धनदत्त ने बहुत उत्साह दर्शाया । उसने अपनी पुत्री को तथा बिंबिसार को अपार धन-संपत्ति दी । रात्रि के दूसरे प्रहर की दो घटिकाएं बीत चुकी थीं ।
fafaसार शयनगृह में गया । आज उसके अन्तर्मन की एक अभिलाषा पूर्ण हुई थी। जिस तरुणी के लिए वह लालायित था, वह उसे अर्धांगिनी के रूप में प्राप्त हो गई थी और आज की रात ।
नंदा अभी शयनगृह में आई नहीं थी । वह अपनी सखियों से घिरी हुई बैठी थी। उनसे कब छुटकारा मिले, यह कहना कठिन था - और अन्तर् में पिउमिलन की आशा उभर रही थी ।
पिउमिलन की आशा भी एक मीठी अकुलाहट है ।
आशा के गीत हृदय में उठते रहते हैं, परन्तु प्रियतमा के प्रथम दर्शन के समय ये सारे गीत विस्मृत हो जाते हैं ।
fafaसार शयनगृह में एक सुन्दर विरामासन पर बैठा था। उसने चारों ओर देखा । दीपमालिकाएं जल रही थीं । विशाल पलंग पर फूलों की चादर बिछी हुई थी। एक त्रिपदी पर स्वर्ण का थाल पड़ा था । उसमें पुष्पमालाएं थीं और उन पर गुलाबी रंग का वस्त्र ढका हुआ था ।
नंदा के रूप यौवन में बिंबिसार यह भी भूल गया था कि इससे भी भव्य मधुयामिनी उसने सप्तभूमि प्रासाद में संगीत की मधुर स्वर लहरियों के बीच देवी आम्रपाली के साथ मनाई थी ।
परन्तु आज नंदा उसके हृदय पर कब्जा कर बैठी थी । देवी आम्रपाली का पत्र बहुत समय पूर्व ही आ गया था, परन्तु प्रत्युत्तर नहीं दिया जा सका । दो महीने तो स्वर्ण के सौदे में बीत गये और नंदा की स्मृति में मानो समय अत्यंत संक्षिप्त हो गया था ।
बिंबिसार बार-बार द्वार की ओर देख रहा था। नंदा को वहां देखने उसकी आंखें प्रतीक्षारत थीं ।
जहां अधैर्य होता है वहां समय बहुत दीर्घ बन जाता है ।
और उसने देखा, लज्जा के भार से मानो नत हो गई हो, ऐसी नंदा को खींचकर उसके सखियां उसको शयनकक्ष में दाखिल कर गईं और जाते-जाते एक सखी बोली - " श्रीमन् ! नारी और फूल दोनों समान होते हैं।"