________________
२६२ अलबेली आम्रपाली
आप पूर्ण निश्चित रहें । स्वर्ण बनाने की सारी जिम्मेवारी मेरी है । आप मात्र शांति से देखते रहें ।"
धनदत्त बोला - "अरे भाई ! वह राख तेजंतुरी है, इसका प्रमाण ?" "सेठजी ! मैंने तेजंतुरी देखी है। मैं उसका प्रयोग भी जानता हूं। यदि मुझे निश्चय नहीं होता तो मैं यह सौदा कभी स्वीकार नहीं करता ।"
धनदत्त सेठ निश्चित हो गया । उसकी उदासी चली गई। उसने जयकीर्ति की पीठ थपथपाई |
कक्ष के बाहर नंदा खड़ी ही थी । वह मुखवास लेकर भीतर आई । धनदत्त सेठ ने कहा - "नंदा ! जयकीर्ति अपने परिवार का त्राण है ।"
जयकीत की ओर देखती हुई नंदा वहां से चली गई ।
जयकीर्ति ने फिर दामोदर को अपने पास बुला लिया। एक सप्ताह पर्यन्त उसने तीन-तीन हजार मन ताम्र, लोहा, पारद और शीशा खरीद लिया । उसने अज्ञात रूप से प्रयोग प्रारंभ कर दिया ।
इस प्रयोग में दामोदर अत्यन्त सहायक बना। बिंबिसार प्रतिदिन सौ, डेढ़ सौ मन स्वर्ण तैयार करने लगा। इस कार्य में नंदा भी सहायक बनी। उसका जयकीर्ति के साथ सतत संपर्क बना रहा ।
दोनों के हृदय में प्रेम के अंकुर फूट रहे थे। सतत संपर्क से वे अंकुर अंकुरित होने लगे ।
एक महीने में तीन हजार मन से भी अधिक स्वर्ण का निर्माण हो गया ।
धनदत्त में नये प्राणों का संचार हुआ। जयकीर्ति के प्रति उनकी ममता प्रबल हुई । और पन्द्रह दिन पश्चात् सेठ धनदत्त और जयकीर्ति – दोनों महामंत्री से मिले और 'सौ वाह' स्वर्ण तैयार होने की बात बतायी ! महामंत्री आश्चर्य मुग्ध बन गये । और सारा स्वर्ण राज्य भंडार में पहुंचा दिया गया. राज्य भंडार से पूरा मूल्य चुका दिया गया ।
धनदत्त सेठ का सितारा चमक उठा ।
ऐश्वर्य और सम्पत्ति की झिलमिल पूर्ववत् हो गई ।
और उज्जयिनी के अन्यान्य बड़े-बड़े व्यापारी धनदत्त सेठ की इस स्थिति से आश्चर्यचकित हुए ।
चारों ओर से धनदत्त सेठ को बधाइयां आने लगीं ।
आम्रपाली का उत्तर आ चुका था। किंतु बिंबिसार को समय ही नहीं मिल रहा था उसका प्रत्युत्तर देने का ।
और सेठ धनदत्त ने अपनी पुत्री की मंगनी जयकीर्ति के साथ कर दी । जयकीर्ति धन्य हो गया और नंदा भी प्रसन्न हो गयी ।
वहां के ज्योतिषी ने आश्विन मास में विवाह का मुहूर्त निकाला ।