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अलबेली आम्रपाली २४७
कौन होगा ? मुझे क्या, कोई भी क्यों न हो ? ऐसे स्वस्थ और सुन्दर पुरुष के चरणों में यौवन को न्योछावर करना नारी के लिए महान् गौरव है। ऐसे पुरुष के सहवास से रूप, यौवन और समर्पण खिल उठता है। 'जीवन धन्य बन जाता है।
बिंबिसार ने कल्याण राग की आराधना को हृदयवेधक आन्दोलन के साथ पूरा किया।
सभी स्तब्ध रह गए।
आचार्य सुप्रभ ने कहा--"धन्य साधना ! श्रीमन् ! आज हम सब धन्य हो गए । जीवन में प्रथम बार यह लाभ प्राप्त हुआ है।" यह कहकर सुप्रभ बिंबिसार को नमस्कार करने आगे बढ़ा.। बिंबिसार ने तत्काल खड़े होकर कहा"आचार्य ! मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति को लज्जित न करें।"
यह कहते हुए आचार्य सुप्रभ को गले लगा लिया। फिर बिंबिसार बोले-"आचार्य ! अब आप बजाएं।"
आचार्य ने कहा-"नहीं, श्रीमन् ! कल्याण राग का स्वरूप अभी भी वातावरण को आन्दोलित कर रहा है और राग के इस सूक्ष्म स्वरूप को सुनने के पश्चात् मेरी अंगुलियां अब वीणा पर तरंगित नहीं हो सकेंगी।"
कामप्रभा बोली-"आचार्य ! आपका विचार मुझे यथार्थ लगता है। इस वादन के पश्चात् दूसरे किसी का वादन शोभित नहीं होगा।" फिर उसने बिंबिसार की ओर नजर कर कहा-"प्रिय जयकीर्ति ! एक बार और आप वीणा धारण करें। सभी की इच्छा, सभी का मन और सभी की दृष्टि आपके प्रति स्थिर हो रही है।"
बिबिसार ने वीणा हाथ में लेकर कामप्रभा से पूछा-"देवि ! आपको जो राग इष्ट हो, वह बताएं।" ___ कामप्रभा बोली-"श्रीमन् ! वर्षा ऋतु में मुझे 'हिंडोल' राग अत्यन्त प्रिय
तत्काल बिबिसार ने वीणा पर हिंडोल राग को आंदोलित किया और कुछ ही समय में वह राग सारे वातावरण में तरंगित हो गया।
यदि यह वीणा महाघ होती तो बिंबिसार और अधिक चमत्कार पैदा कर देता। परन्तु यह वीणा पुष्पवीणा थी। फिर भी अपनी सधी अंगुलियों से बिंबिसार ने उस पर हिंडोल राग को नचाना प्रारंभ किया।
सभी उस राग में लवलीन हो रहे थे। जब हिंडोल राग समाप्त हुआ तब प्रातःकाल होने ही वाला था। समय या काल का भान कलाकार को रहता ही नहीं।