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२३८ अलबेली आम्रपाली
यह अनिन्द्य सुन्दरी कौन होगी?
४६. कामप्रभा के भवन में बहुत बार ऐसा होता है कि आंख के सामने आनेवाली वस्तु केवल पलकों में नहीं रहती, हृदय में उतर जाती है और हृदय में हलचल पैदा कर देती है। ___ आम्रपाली के प्रणय-नंधन से धन्य बने हुए बिंबिसार श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर के द्वार से निकलती हुई उस अनिन्द्य सुन्दरी को देखकर अवश बन गए थे।
यह तरुणी कौन होगी, इस प्रश्न का उत्तर उन्हें प्राप्त नहीं था। क्योंकि सुन्दरी तो चली गयी थी और बिंबिसार उसके रूप-लावण्य में उलझकर वहीं-केवहीं खड़े रह गए थे। तरुणी के अदृश्य हो जाने पर उन्हें भान हुआ, अरे ! यह देवकन्या कौन होगी?
परायी कन्या या परायी नारी के विषय में पूछताछ करना उचित नहीं लगता। एक निःश्वास छोड़ते हुए बिंबिसार मन्दिर में गए।
आज उनका मन तरुणी को देखने के पश्चात् खो गया था।
वास्तव में पुरुषों की सबसे बड़ी पामरता यही है। देवी आम्रपाली जैसी अलबेली सुन्दरी का स्वामी होने पर भी आज उनके चित्त को एक अनजान तरुणी अवश कर गयी थी।
पुरुषों के हृदय कितने ही कठोर क्यों न हों, वे कमजोर होते हैं, अस्थिर और चंचल होते हैं । उनके प्यार की पलकें नये-नये रंगों को उभारती रहती हैं... वे एक क्षण में एक नारी को दिल दे बैठते हैं और दूसरे क्षण किसी दूसरी सुन्दरी के चरणों में स्वयं को न्यौछावर कर देते हैं। वे एक को वचन देते हैं कि आज से तू ही मेरी सह-पथिक है, तेरे सिवाय दूसरी कोई मेरे चित्त में स्थान नहीं पा सकती । वही पुरुष दूसरे ही क्षण अन्य नारी को इससे भी भारी वचन दे बैठता
वाह रे पुरुष !
बिंबिसार उस अनिन्द्य तरुणी के विषय में सोचते-सोचते पॉथशाला में पहुंचे, उस समय वैशाली गया हुआ संदेशवाहक आ पहुंचा।
प्रियतमा के संदेश को लाने वाले संदेशवाहक को देखते ही बिंबिसार की स्मृति से वह तरुणी ओझल हो गयी । 'चित्त प्रसन्न हो गया। संदेशवाहक ने आम्रपाली द्वारा प्रदत्त संदेश की नलिका बिबिसार को सौंप दी।
प्रिया का सन्देश ! वह सन्देश जिसकी सतत चाह हृदय को झकझोरती थी।
बिंबिसार ने संदेशवाहक को पांच स्वर्णमुद्राएं दी. वह वहां से विदा होने प्रस्थित हुआ। बिंबिसार ने उसे पुनः बुलाकर कहा- "सुन !"