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अलबेली आम्रपाली २१३
सुरनंद तो इतना ही जानता था कि कादंबिनी एक रूपवती नर्तकी है और मगधेश्वर के प्रयोजन से वह वैशाली में आई है। उसके कार्य में कोई विघ्न उपस्थित हुआ है, इसलिए यह वहां से छिटक कर आ गई है।
कोठरी की शय्या पर सोती हुई कादंबिनी कुछ और ही सोच रही थी। वह एक नूतन आशा के गीत गूंथ रही थी। यदि काया में व्याप्त विष दूर हो जाए तो किसी नगरी में जाकर सुन्दर युवक को जीवन-साथी बनाकर रूप और यौवन को धन्य बनाना। किसी पुरुष के चरणों में सर्वस्व का अर्पण कर नारी-जीवन का सौभाग्य प्राप्त करना। ___ आशा के ऐसे सुन्दर गीत के मध्य मन को पिरोने वाली कादंबिनी को यह कल्पना भी नहीं थी कि बाहर सोया हुआ सुरनंद विषयानंद की कल्पनाओं में उन्मज्जन-निमज्जन कर रहा है। __ शय्या मृदु हो या कठोर, स्थान कैसा भी क्यों न हो, किन्तु शरीर की थकावट व्यक्ति को निद्रा की गोद में ला बिठाती है। __ कादंबिनी आशा के गीत में खोए जा रही थी। परन्तु काया की विश्रान्ति नींद को बुला रही थी।
एकाध घटिका के पश्चात् कादंबिनी का आशा-गीत स्वप्नलोक में समा गया। थकावट ने. देह को निद्राधीन कर डाला । कुछ ही समय में कादंबिनी सघन निद्रा में चली गई। ___ सुरनंद पचास वर्ष का था। घर में पत्नी थी, सात बच्चे थे। उसने प्रथम वय में अनेक क्रिडाएं की थीं। किन्तु राख के नीचे दबी हुई अग्नि कब भभक जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। उसकी दबी हुई काम-लालसा की ज्वाला भभक उठी।
सुरनंद धीरे से उठा । और कोठरी में दीपक को देखा। कोठरी में मंद-मंद प्रकाश था और कादंबिनी गाढ़ निद्रा में सो रही थी।
वह पुन: अपनी खाट पर आ गया। उसने मन-ही-मन सोचा-मैं कादबिनी के पास जाऊं और यदि वह चिल्ला उठे तो संभव है कठिनाई पैदा हो जाएगी। फिर मैं क्या कर पाऊंगा?
तत्काल उसे एक उपाय सूझा। उसने शय्या के नीचे रखी हुई अपनी कटारी बाहर निकाली 'उसने मन-ही-मन निर्णय किया कि यदि कादंबिनी आनाकानी करेगी या चिल्लाएगी तो कटारी उसकी छाती में घुसेड़ दूंगा और उसके पास जो धन-माल है उसको लेकर भाग जाऊंगा।
वह खड़ा हुआ। उसने पुनः कादंबिनी की ओर देखा । कादंबिनी गाढ़ निद्रा में सो रही थी।
खुली कटारी को वह हाथ में लेकर कोठरी में गया। धीरे से उसने द्वार बंद किया और कादंबिनी की शय्या के पास जाकर दो क्षण तक वहां खड़ा रह गया।