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१९६ अलबेली आम्रपाली
आम्रपाली और बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर उसने मौन रहना ही श्रेयस्कर समझा । वह मौन रही !
प्रियतम के बिना एक रात बीतने के बाद वह जान गई कि वियोग की वेदना कितनी असह्य होती है । उसको न भोजन के प्रति और न किसी भी प्रकार के आमोद-प्रमोद के प्रति रस था। मानो एक व्यक्ति के चले जाने पर सैकड़ों दासदासियों से सुशोभित और इन्द्रपुरी जैसा वह भवन भयंकर खंडहर जैसा प्रतीत होता था ।
भवन के वाद्यकारों ने देवी के चित्त को प्रसन्न रखने के लिए प्रातः काल सुमधुर रागिनी प्रवाहित की थी।
परन्तु
आम्रपाली का मन उज्जयिनी के पथ पर दौड़ रहा था । उन्होंने रात्रि कहां बिताई होगी ? मार्ग में कोई संकट तो नहीं आया होगा ? लिच्छवियों के घुड़सवार तो पीछे नहीं लगे होंगे ? वैशाली से उज्जयिनी का मार्ग भयंकर है । बीच में एक सिंहपल्ली नामक छोटा गांव है। वहां लुटेरे बसते हैं । वहां से गुजरने वाले प्रत्येक पथिक को विपत्ति का सामना करना ही पड़ता है। तो क्या उनको भी ?
इस प्रकार के अनेक विचार उसकी मनोवेदना को बढ़ा रहे थे । प्रिय वस्तु का वियोगकाल अत्यन्त विषम होता है ।
आम्रपाली के लिए तो अब बिंबिसार के संदेश को प्राप्त करना ही प्रिय संयोग था । वह संदेश कब आए ? किसके साथ आए ?
इस प्रकार के अनेक प्रश्न उसके मन में उभरते और बिना समाहित हुए ही नये प्रश्नों के अंबार के नीचे दब जाते ।
मध्याह्न बीत गया ।
आम्रपाली आंखें बंद कर शय्या पर पड़ी थी। इतने में ही माध्विका ने कक्ष में प्रवेश कर कहा - " देवी ! अत्यन्त खराब समाचार प्राप्त हुए हैं।" "क्या महाराज का कोई संदेश आया है ?"
"नहीं, देवि ! नदी के तट वाले उपवन में एक भयंकर ।"
"क्या हुआ ?"
" कुमार शीलभद्र मौत का शिकार हो गया है ।"
"कैसे ? क्या ?"
"देवि ! अभी-अभी समाचार प्राप्त हुआ है । आज प्रातः एक कठियारा उपवन की ओर गया था। वहां एक अश्व हिनहिना रहा था । वह कुतूहलवश निकट गया। वहां एक मनुष्य निर्जीव पड़ा था। वह कठियारा घबरा गया। वह उसी अश्व पर बैठकर नगरी में आया उसकी बात सुनकर चरनायक और