________________
अलबेली आम्रपाली १८३
__ आम्रपाली और बिंबिसार--दोनों दो मसण शय्या पर निद्राधीन थे। मन्दमन्द समीर प्रवहमान था।
प्रातःकाल हुआ। शुक्रवार का सूर्य उदित हुआ।
आम्रपाली हड़बड़ाकर उठी। प्रासाद में भारी कलरव हो रहा था। बिंबिसार भी जाग गया । धनंजय बिंबिसार का धनुष-बाण लेकर वहां आ पहुंचा। वह बोला-"महाराज ! युवकों ने सप्तभूमि प्रासाद पर सशस्त्र आक्रमण कर डाला है। देवी के रक्षक आक्रमणकारियों को बाहर निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं । दो हजार से भी अधिक लिच्छवी युवक हैं । अब कुछ ही समय में प्रासाद में प्रवेश कर जाएंगे।"
__ "मुझे भी यही संशय था।" कहकर आम्रपाली ने बिबिसार का हाथ पकड़कर कहा--''महाराज ! आप और धनंजय सुरक्षित रूप से बाहर निकल जाएं । सप्तभूमि प्रासाद में एक भूगर्भ-मार्ग है। उससे आप नगर के बाहर पहुंच जाएंगे । अष्टकुल के विशिष्ट व्यक्तियों तथा मेरे अतिरिक्त इस मार्ग की किसी को जानकारी नहीं है।"
बिंबिसार कुछ कहे, उससे पूर्व ही पांच-सात दासियां दौड़ी-दौड़ी आयीं। उनमें माध्विका भी थी। वह बोली- 'देवि ! लोग महाराज का वध करने के लिए आक्रमण कर रहे हैं । प्रासाद के रक्षकों के अथक प्रतिरोध के उपरांत भी कुछेक लिच्छवी युवक प्रासाद में घुस आए हैं । और आप वसंतगृह में हैं, यह सोचकर वे उसी ओर गए हैं।"
"माध्विका ! भवन के पिछले भाग में तो कोई नहीं गया है न ?"
"नहीं, देवि ! 'परन्तु कुछ ही समय में सारा प्रासाद उनसे घिर जाएगा, ऐसी सम्भावना है।"
आम्रपाली ने स्वस्थ स्वरों में कहा-"कोई बात नहीं है। तू जा और पिछली सोपानश्रेणी का द्वार खोल'. 'मैं महाराजा को साथ लेकर अभी आती हूं। किसी भी उपाय से दो अश्व लेकर राघव पश्चिमी द्वार पर पहुंच जाए।"
"जी।" कहकर माविका चली गयी।
विचार करने का अवकाश नहीं था । आम्रपाली अपने खंड में गयी। एक पेटिका से उसने एक लम्बी चाबी निकाली और बिना विलम्ब किए वह बिंबिसार और धनंजय को साथ ले पिछली सोपानश्रेणी की ओर चल दी।
प्रासाद के नीचे भयंकर कलरव हो रहा था..."बिंबिसार को पकड़ो... मारो 'वैशाली के शत्रु का नाश करो...' ऐसी आवाजें आ रही थीं। ___ आम्रपाली भूगर्भ-गृह के पास आयी। उसने अपनी चाबी से द्वार खोला। सभी ने भीतर प्रवेश किया। भूगर्भ का द्वार पुनः बन्द कर दिया। उस खंड में भयंकर अंधकार था। दीपमालिका नहीं थी। फिर भी एक दीवार के पास