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अलबेली आम्रपाली १६७
एकता के लिए मैंने सारे अरमानों को धूल में मिला दिया था, उस समय गणसभा के बीच आपने क्या-क्या वचन नहीं दिए थे ? मेरे पद-गौरव का चित्रांकन कितने नयनरंजक रंगों से किया गया था। और आज वैशाली के नवजवान जनपदकल्याणी को नगरनारी या वारवधु मानते हैं ? वे क्या मुझे अपनी कामवासना की पूर्ति का साधन मानते हैं ? मैं यह सब क्यों सहन करूं !" आम्रपाली ने कहा।
प्रियतमा के ये शब्द सुनकर बिंबिसार अवाक रह गया। गणनायक तो आम्रपाली को बिंबिसार से निवृत्त होने के लिए समझाने आए थे, पर आम्रपाली ने एक नया प्रश्न उपस्थित कर डाला। दो-चार क्षण मौन रहकर गणनायक बोले-"बेटी! भीड़ में सदा गडरिया प्रवाह होती है। लोगों का यह स्वरूप आज का नहीं, सदा-सदा का रहा है। लोगों का रोष तेरे पर नहीं, पर।"
"पर क्या ?"
"पुत्रि ! आज जो मृत्यु का सिलसिला चल रहा है, उसमें विरोधी राज्य का हाथ है, ऐसा लोगों को मानना पड़ रहा है । और आज युवराज।" ___ "पूज्यश्री ! जनपदकल्याणी वैशाली गणतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। उसने मंगलपुष्करणी में स्नान किया है । उसने समग्र वैशाली का विश्वास प्राप्त किया है । ऐसी जनपदकल्याणी वैशाली का विनाश चाहे या करे, यह बात गले नहीं उतरती। वह अपने यहां षड्यंत्रकारी को आश्रय दे, यह कैसे हो सकता
गणनायक बोले-"मुझे संशय नहीं है, किन्तु गणसभा के अन्यान्य सदस्यों को संशय है और वे बिविसार को इस षड्यंत्र का नायक मानते हैं।"
"आप क्या मानते हैं ?"
"यदि मैं इन्हें षड्यंत्रकारी मानता तो यहां आता ही नहीं। परंतु महाबलाधिकृत आदि उच्च पदस्थ सभी व्यक्ति बिंबिसार के प्रति संशयशील हैं, इसलिए पुत्रि !..." गणनायक कहते-कहते रुक गया।
"आगे कहें, आज्ञा दें, मार्ग सुझाएं, हिचकें नहीं।" आम्रपाली ने कहा। बिंबिसार सारी बातें ध्यान से सुन रहा था।
"यदि मेरे पर संशय है तो क्या आप यही मार्ग बताएंगे कि मैं वैशाली छोड़ कर चला जाऊं?" बिंबिसार ने कहा।
"आपने मेरा मन पढ़ लिया।" कहकर सिंहनायक हंस पड़े।
"किन्तु ऐसा होना अशक्य है। अन्याय और असत्य को सहना मेरे लिए शक्य नहीं है । मेरे स्वामी किसी भी प्रकार से इस षड्यंत्र में शामिल नहीं हैं।" आम्रपाली ने रोष भरे स्वरों में कहा।
"पाली ! तुम नहीं जानती। युवराज की अनुपस्थिति में भी यदि कोई मृत्यु