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अलबेली आम्रपाली १६५
"हां, क्या मैं विषशास्त्र में निष्णात नहीं हूं ? आचार्य के साथ चर्चा करूंगी।" हंसते-हंसते कादंबिनी ने कहा ।
“परन्तु...?”
"भय का कोई कारण नहीं है, चाचा ! गोपालस्वामी एक वैद्य हैं, देव नहीं ।" कादंबिनी ने कहा ।
“फिर सावधानी बरतने वाला सदा सुखी होता है । एकाध सप्ताह तक धैर्य रखा जा सके तो उत्तम है ।" वृद्ध प्रबंधक ने समतापूर्वक कहा ।
"अच्छा, परन्तु कल आनेवाले अतिथि का तो स्वागत करना ही होगा, क्योंकि मैंने उसको आमंत्रित कर दिया है ।"
वृद्ध प्रबंधक कुछ नहीं बोला. वह सोच में पड़ गया। दो क्षणों के बाद उसने प्रश्न किया- "स्थान कौन-सा होगा ?"
"अभी तो स्थान का निश्चय नहीं किया है परन्तु एक सुन्दर विचार उभरा है । कल मैं आनेवाले माननीय अतिथि के साथ जल-विहार करने जाऊंगी ।"
वृद्ध प्रबंधक अवाक् बन गया । वह आश्चर्यभरी नजरों से कादंबिनी की ओर देखकर सोचने लगा, महामंत्री ने जिस पर इतना विश्वास किया है, इतनी भारी जिम्मेवारी दी है, वह भले ही अवस्था में छोटी हो, परन्तु गजब की बुद्धिमती है । वैशाली के पास बहनेवाली नदी जल-विहार के लिए उपयुक्त है । परन्तु वहां से अकेले यहां भवन तक आना जोखिम भरा कार्य है । यह विचार आते ही प्रबंधक ने पूछा - "देवि ! इतनी दूरी से भवन तक आना तो...।"
बीच में ही कादंबिनी ने कहा- "अपना जो चतुर अश्व है, वह मुझे संभाल लेगा । आप पूर्ण रूप से निश्चिन्त रहें। मैं ऐसी योजना बनाऊंगी कि किसी को संशय भी नहीं होने पाएगा और चरनायक को षड्यन्त्र की भनक भी नहीं मिलेगी ।"
वृद्ध प्रबंधक ने उठते-उठते कहा - " देवी ! वास्तव में ही आपकी बुद्धि और दृष्टि में अपूर्व तेज है, सूझबूझ है ।"
वृद्ध प्रबंधक चला गया ।
रात्रि का प्रथम प्रहर चल रहा था। सिंह सेनापति अपने रथ पर आरूढ़ होकर सप्तभूमि प्रासाद की ओर प्रस्थित हो गया ।
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परन्तु वे वहां पहुंचे, उससे पूर्व ही सप्तभीम प्रासाद के पास लगभग डेढ़ हजार से अधिक युवक एकत्रित होकर धूम मचा रहे थे । वे नारे लगा रहे थे"वैशाली के शत्रु को बाहर निकालो।"" मगध के दस्यु को दिखाओ ।" "छद्मवेशी को छुपाओ मत, प्रकट करो...।”