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१६० अलबेली आम्रपाली
___ कभी-कभी अधूरी बात बीच में रह जाती है। वीणावादक आचार्य के परिचय की बात अधूरी रह गयी। ____ सुदाम की मृत्यु के समक्ष वैशाली पर बिजली गिर पड़ी। दूसरे ही दिन सारा गणतन्त्र दुःखी हो गया। सभी को यह आश्चर्य हो रहा था कि मृत्यु का कोई कारण स्पष्ट रूप से बाहर नहीं आया' 'कोई समझ नहीं पाया कि मृत्यु कैसे हुई ?
सिंह सेनापति और चरनायक सुनन्द ने इस मृत्यु के रहस्य को अनावृत करने का भरसक प्रयत्न किया पर मृत्यु का भेद वैसा का वैसा अज्ञात ही रहा। मात्र इतना ही ज्ञात हो सका था कि रात्रि में धनुर्भर सुदाम ने अपने समस्त दास-दासियों को अन्यत्र भेजा था और आज ही अपने शयन-कक्ष में एक पुष्पशय्या का निर्माण कराया था । उसी पुष्प-शय्या पर धनुर्धर का निर्जीव शरीर मिला था। वह वहां कैसे मरा? उसके शरीर वस्त्रों पर मैरेय के दाग लगे थे, तो क्या किसी ने उस पर मैरेय उडेला था ? पर दूसरे किसी व्यक्ति के भवन में आने के चिह्न प्राप्त नहीं थे । समस्या उलझती जा रही थी।
सुदाम की मृत्यु की गुत्थी सुलझते चार दिन बीत गए और पांचवें दिन एक भयंकर घटना और घटित हुई।
वैशाली का महान रथपति वीरसेन का शव एक उपवन में प्राप्त हुआ। उसका अश्व एक वृक्ष से बंधा हुआ या। उपवन में एक यक्ष मन्दिर था। लोगों की यक्ष पर अपार श्रद्धा थी। वे मानते थे कि समस्त वैशाली का संरक्षण इस यक्ष द्वारा होता है।
रथपति वीरसेन चालीस वर्ष की उम्र का था। उसके भवन में उसकी सात पत्नियां थीं। फिर भी वह एक बार कादंबिनी की ओर आकर्षित हुआ और अन्त में प्राण गंवा बैठा।
एक समान तीन व्यक्तियों की एक ही प्रकार की मृत्यु से सुनन्द घबरा गया।
रथपति वीरसेन वैशाली की रथसेना का कुशल नायक था। उनके पास एक हजार रथों की सेना थी और रथयुद्ध में वह बेजोड़ माना जाता था।
सुदाम जैसे महान धनुर्धर के अभाव का घाव अभी हरा ही था कि उस पर एक और भयंकर आघात लगा । वैशाली की शक्तिशाली सेना का महान रथपति काल-कलवित हो गया। __चरनायक सुनन्द ने सूक्ष्मता से वीरसेन के शव का निरीक्षण किया। उसके शरीर पर कोई जहरीले प्राणी के दंश का चिह्न नहीं मिला और न कोई विषपान कराए जाने की निशानी ही मिली। फिर भी मृत्यु विष से हुई है, यह निश्चित हो गया।