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१४६ अलबेली आम्रपाली
३२. महान् धनुर्धर सुवाम
इधर कादंबिनी के जाल में एक और शिकार फंस गया । लिच्छवी युवकों को धनुर्विद्या में निष्णात करने वाला सुदाम शक्तिशाली योद्धा था। उसकी उम्र मात्र पैंतीस वर्ष की थी । वैशाली गणतंत्र के सैन्यबल में उसका स्थान महत्त्वपूर्ण था । वह महारथी के रूप में प्रसिद्ध था ।
सुदाम धनुर्विद्या के गुप्त रहस्यों का जानकार था। उसमें एक साथ शताधिक बाण छोड़ने की शक्ति और कला थी । उसका बाहुबल भी इतना सशक्त था कि वह जिस वृक्ष के स्कन्ध में बाण गाड़ देता, उसे कोई भी सशक्त व्यक्ति हाथ से बाहर नहीं खींच सकता था ।
वैशाली की गणसभा को सुदाम पर गर्व था,
क्योंकि वैशाली की स्वायत्तता
को बनाये रखने वाली सैन्यशक्ति का वह गुरु था ।
वह सुदाम भी कादंबिनी के अभिनय और रूप छटा से आकर्षित हुआ था और आज वह कादंबिनी से साक्षात्कार करने गया था ।
कादंबिनी ने जब मगध से वैशाली के लिए प्रस्थान किया था, तब मगध के महामंत्री ने उसे जो नाम बताये थे उनमें धनुर्धर सुदाम का नाम महत्त्वपूर्ण था, इसलिए कादंबिनी ने सुदाम का खूब आदरभाव पूर्वक सत्कार किया ।
सुदाम ने आडी - अंबली बातें न कर स्पष्ट शब्दों में कहा - "देवि ! वंशाली में रूपवती नारियों की कमी नहीं है । तुम्हारे से अधिक रूपवाली स्त्रियां यहां हैं। पर कला, रूप और यौवन- इन तीनों का संगम दुर्लभ होता है । ये तीनों तुम्हारे में अप्रतिम हैं । ये तीनों तुम्हारे में अभिव्यक्त हैं। मैं तुम्हारा अभिनन्दन करने नहीं आया हूं किन्तु तुम्हारा सहवास प्राप्त करने आया हूं।"
"महाराज ! आप जैसे तेजस्वी पुरुषों का योग सौभाग्य से ही प्राप्त होता है परन्तु """
"बोलो "मैं तुम्हें वह दूंगा जो तुम मांगोगी ।"
यह सुन कादंबिनी हंस पड़ी । वह बोली - " आप धनुर्धर हैं, महारथी हैं इसलिए आप नहीं समझ सकते कि नारी की प्रसन्नता किसमें होती है । महाशय ! मूल्य से पदार्थ खरीदा जा सकता है। मैं तो आनन्द में विश्वास करती हूं, मूल्य में नहीं ।"
"क्या...?” सुदाम ने आश्चर्य के साथ पूछा ।
"तेजस्वी पुरुष ! मैं अभी तक किसी पुरुष के संपर्क में नहीं आई हूं।" Tarifबनी ने कहा ।
"सच कह रही हो ?”
"हां, यक्ष के भय से ।"