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अलबेली आम्रपाली १४३ मृत्यु अवश्यंभावी है। किन्तु इस घटना में वैसे विष के प्रयोग का अनुमान नहीं किया जा सकता।"
"उष्ट्र विष के स्पर्श से मरने वाले का शरीर रक्ताभ बन जाता है। किन्तु यह शव तो नीली झांई वाला है।" ___ आर्य सुनन्द विचार में पड़ गया। उसने पुनः वैद्यराज से पूछा- "क्या यह अनुमान नहीं किया जा सकता कि किसी विषधर की फूंक से पद्मकेतु की मृत्यु हुई हो?"
वैद्यराज बोला-"आर्य सुनन्द ! वातबल नाम की नाग जाति का एक नाग जैसा प्राणी होता है। वह किसी को काटता नहीं, केवल फूंक मारता है और उस फूंक के स्पर्श से आदमी की मृत्यु हो जाती है । पर, यहां ऐसा अनुमान नहीं किया जा सकता। क्योंकि उस फूंक से मरने वाले व्यक्ति का शरीर श्यामल बन जाता है। और वैसा प्राणी प्रायः कामरूप प्रदेश की झाड़ियों में ही क्वचित् प्राप्त होता है।"
फिर चरनायक ने महाबलाधिकृत से बातचीत की। महाबलाधिकृत ने इतनासा कहा-"पद्मकेतु अपने साथियों के साथ कादंबिनी के भवन की ओर गया था और कुछ ही समय पश्चात् लौट आया था। पुनः भोजन आदि से निवृत्त होकर सायं अश्व पर आरूढ़ होकर कुमार भ्रमण के लिए निकला था। जाते-जाते रक्षकों से इतना ही कहा था कि मैं कुछ घूम-फिर कर अभी आ रहा हूं.. और प्रात: उसका निर्जीव शव वहां मिला । इससे अधिक कुछ भी ज्ञात नहीं हो पाया है।"
पद्मकेतु की मृत्यु सर्पदंश से हुई है-यह बात चारों ओर फैल गई। उसकी विधिपूर्वक अन्त्येष्टि कर सभी शोकमग्न हृदय से घर लौटे ।
दूसरे दिन ।
पद्मकेतु की मृत्यु ने चरनायक के मन में उथल-पुथल मचा दी। वे इसका रहस्योद्घाटन करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कादंबिनी से मिलने का विचार किया।
चरनायक सुनन्द कादंबिनी के भवन पर गए। परिचारिकाओं ने उनका स्वागत किया और एक सुन्दर कक्ष में आसन ग्रहण करने का अनुरोध किया।
कुछ ही क्षणों पश्चात् कादंबिनी ने कभ में प्रवेश करते हुए कहा-"महाराज की जय हो। अभी आप इस समय में...?"
"देवि ! एक करुण घटना घटित हो गई इसलिए...?" "करुण घटना ?" "हां, देवि ! परसों आपसे मुलाकात करने एक नवयुवक आया था ?"
"हां, क्या वह कोई ठग था? उसने तो मुझे महाबलाधिकृत का पुत्र होने का परिचय दिया था।"