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अलबेली आम्रपाली १३३
"होगा क्या ? इस घटना में कोई अपराधी है, ऐसा मुझे नहीं लगता। फिर भी हमें खोज करनी ही होगी ।"
चरनायक बाहर चला गया ।
महामन्त्री एक ओर जाकर कादंबिनी से बोले - " पुत्रि ! तेरे लिए यह पहला प्रसंग है । तूने मगध का बहुत बड़ा उपकार किया है। मरने वाला और कोई नहीं, किन्तु रानी त्रैलोक्य सुन्दरी का एकाकी लाड़ला पुत्र दुर्दमकुमार है ।" "हैं...।”
"तू घबरा मत । तुझे गर्म आंच भी नहीं लगने पाएगी । तुझे केवल अपनी बात पर ही अडिग रहना है ।"
“परन्तु···?”
"महादेवी की पांख आज टूट गई है। पांखरहित पक्षी कुछ भी नहीं कर सकता और इसमें तू सर्वथा निर्दोष है। तू निश्चिन्त रह ।"
इतने में ही चरनायक अन्दर आकर बोला- ' मन्त्रीश्वर ! मैंने कुमार के साथी को गिरफ्तार कर लिया है। शव को एक रथ में रखने की आज्ञा दे दी है ।"
" अच्छा किया। अब हमें यहां से शीघ्र ही चलना चाहिए और किसी बात की खोज तो नहीं करनी है ?" मन्त्रीश्वर ने कहा ।
चरनायक बोला- "नहीं। मैंने कादंबिनी तथा परिचारिकाओं से पूछताछ कर ली है ।"
कादंबिनी बोली - " महात्मन् ! मरने वाला कौन है, क्या यह आपने जान लिया ?"
चरनायक बोला- "देवि ! हमने उसके साथी को पकड़ लिया है, इसलिए मरने वाले की पहचान अब कोई पहेली नहीं है ।"
और कुछ ही समय पश्चात् दो रथ कादंबिनी के आवास-स्थल से बाहर निकले । साथ में ही सिपाही श्रीमल्ल को पकड़े हुए घोड़ों पर साथ-साथ चल रहे थे ।
रात्रि का तीसरा प्रहर पूरा होने वाला था । मगधपति और महारानी त्रैलोक्य सुन्दरी गहरी नींद में सोए हुए थे । उनको यह कल्पना भी नहीं थी कि जिस शस्त्र का निर्माण दूसरों के घात के लिए उन्होंने करवाया है, उसी शस्त्र से स्वयं की छाती चीरी गयी है ।
मनुष्य माया करता है दूसरों को फंसाने के लिए, परन्तु सबसे पहले वह स्वयं उसमें फंस जाता है ।
शयनगृह के बाहर खड़ी परिचारिकाओं ने दरवाजा खटखटाया । राजा