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११६ अलबेली आम्रपाली
___ महाराज और महादेवी दोनों ने आचार्य को नमस्कार किया। आचार्य ने आशीर्वाद देकर दोनों को आसन पर बिठाया । कादंबिनी ने दोनों को नमस्कार किया । त्रैलोक्यसुन्दरी बोली- "गुरुदेव ! पहली नजर में कादंबिनी को पहचाना भी नहीं जा सका। इसका स्वास्थ्य..."
बीच में ही आचार्य ने कहा-"महादेवि ! कादंबिनी का यौवन और आरोग्य दीर्घकाल तक टिका रह सकेगा।"
प्रसेनजित भी एकटक कादंबिनी को निहार रहे थे। उनके मन में यह विचार आया कि ऐसी सुन्दरी को विषकन्या नहीं बनाना चाहिए था। यह मगध की महादेवी बनने योग्य है।
आचार्य ने महाराजा से कहा-"राजन् ! कादंबिनी पर किया गया प्रयोग पूर्ण सफल रहा है।"
"आपके लिए कुछ भी अशक्य नहीं है ।" मगधपति ने कहा।
फिर आचार्य ने कादंबिनी की ओर देखकर कहा-"पुत्रि! मैं तुझे एक महत्त्वपूर्ण बात बता रहा हूं। मेरे इस प्रयोग से तू राजनीति का एक जीवंत साधन बन गई है । तेरा शरीर चिर यौवन से शोभास्पद बन गया है-परन्तु तू चिंता मत करना। तेरा शरीर इतना विषाक्त बन गया है कि जिस पुरुष का तू चुंबन लेगी या चुंबन देगी अथवा जिस पुरुष के प्रस्वेद के साथ तेरे शरीर का प्रस्वेद एकमेक होगा, वह पुरुष तत्काल मर जाएगा।"
"गुरुदेव।"
"पुत्रि ! धैर्य रख । संसार का कोई भी विष तेरे पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकेगा, यह तथ्य है। किन्तु राष्ट्रहित के लिए तुझे अपनी सुनहरी आशाओं और आकांक्षाओं का बलिदान देना पड़ा है. अब तू विषकन्या बन गयी है।" _ "गुरुदेव ! ""गुरुदेव गुरुदेव...।"
"मैं सत्य कह रहा हूं पुत्रि ! 'राजनीति के अभ्यास के बहाने मैंने तेरे अरमानों को भस्मसात् कर राख बना डाला है. 'आज से तू मगधेश्वर की अमोघ शक्ति बन गयी है. आज से तेरा यह कर्तव्य है कि मगध के शत्रुओं का तू सर्वनाश करे। मैं समझता हूं कि मैंने अक्षम्य विश्वासघात कर तेरे जीवन के उल्लास को मिट्टी में मिला डाला है। मगध राज्य के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही मैंने यह पाप किया है । मैं अपने अपराध को मुक्त कंठ से स्वीकार करता हूं।"
कादंबिनी ने यह सुनकर अपनी दोनों हथेलियों से मुंह ढक लिया और सिसकसिसक कर रोने लगी।
महादेवी बोली- "पुत्रि ! तेरे व्यक्तिगत सुख से बड़ा सुख है मगध राज्य का सुख । तू किंचित् भी अस्वस्थ मत बन । मैं तुझे अपनी कन्या के रूप में ही रखूगी।"