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अलबेली आम्रपाली ३
विस्तार करने की बात नहीं सोची। इसलिए युद्ध से वे अपरिचित थे। प्रजा सुखी और आनंदित थी।
युद्ध आतंक है। युद्ध में विजयी होने वाला और पराजित होने वाला-- दोनों को युद्ध का विध्वंस आंखों में किरकिरी बनकर जीवनभर खटकता रहता है। जीतने वाला भी दुःखी होता है और हारने वाला भी दु:खी होता है।
उत्तर दिशा के सुदूर में गांधार देश था। वह अपने विद्यापीठ तक्षशिला के कारण सम्पूर्ण भारत में चरित था। तक्षशिला में भारत के कोने-कोने से विद्यार्थी आते और विभिन्न विद्याओं का अभ्यास करते थे। वहां शस्त्रविद्या, राजनीति, आयुर्वेद, संगीत, नृत्य, तत्त्वज्ञान का तलस्पर्शी अध्ययन कराया जाता और हजारों-हजारों विद्यार्थी वहां पढ़ने आते।
विदेह देश की राजधानी मिथिला अनेक पण्डितों को जन्म देने के कारण प्रसिद्ध थी।
काशी का राज्य स्वर्ग का मानवीय रूप जैसा माना जाता था।
इनके अतिरिक्त बंग, गौड, आनर्त, गुर्जर, सिन्धु-सौवीर आदि अनेक छोटेमोटे राज्य अस्तित्व में थे।
उस समय के बड़े राज्यों की एक महत्त्वाकांक्षा यह थी कि सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक बड़े राज्य के रूप में गठित किया जाए और इसकी परिणति के लिए यदाकदा छोटे-मोटे युद्ध होते रहते थे। किन्तु इन छोटी-मोटी लड़ाइयों से प्रजा का जीवन कभी अस्त-व्यस्त नहीं हुआ था। उनकी एकता में कभी संघर्ष नहीं हुआ था।
प्रत्येक राज्य के अपने-अपने स्वर्ण, रुप्यक और ताम्र के सिक्के थे । वे अपनीटंकणशालाओं में निर्मित किए जाते थे। उनमें राज्य का चिह्न अंकित रहता था। पूरे देश में वे समान रूप से प्रचलित थे।
पूरे भारत में तोल-माप के लिए मगधमान और कलिंगमान-ये दो प्रकार प्रचलित थे। किन्तु।
राष्ट्र की धर्म-सम्पदा और ज्ञान-सम्पदा की रक्षा के लिए हजारों वर्षों से अपनी सुख-सुविधाओं की परवाह न कर, प्राणपण से इस प्रवृत्ति में लगे रहने वाले ब्राह्मणों के मन में सम्पत्ति, भोग और लालसा की चिनगारियां उछलने लगी
थीं। - पूर्व भारत की जनता समृद्ध और सुखी थी। सम्पदा की प्रचुरता ने लोगों में भोग-विलास, मद्य-मांस और नारी-सौन्दर्य के प्रति अपार आकर्षण पैदा कर दिया था और वे सब इनकी प्राप्ति में अपना पौरुष मानते थे ।
हिंसामय यज्ञ, मांसाहार और दासप्रथा के विस्तार ने आर्यों के आदर्शों को छिन्न-भिन्न कर डाला था।