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१०० अलबेली आम्रपाली
fafaसार भीतर के कक्ष में गया और शंबुक द्वारा प्रदत्त उत्तम मोतियों की माला लाकर आम्रपाली के गले में पहना दी।
- आम्रपाली ने बिंबिसार के चरण छुए और कहा - " स्वामिन् ! अब हम वैशाली चलें । मैं अपना पुरुषवेश धारण कर लेती हूं। आप भी तैयार हो जाएं ।" दोनों तैयार हो गये । बिंबिसार ने अपने एक उत्तरीय से आम्रपाली के सिर पर पगड़ी-सी बांध दी ।
दोनों अश्वों पर बैठे और वैशाली की ओर चल दिये।
इधर आम्रपाली की प्रिय सखी माध्विका और आर्य शीलभद्र वनप्रदेश में आम्रपाली की खोज कर लौट आये। उन्हें मरा हुआ वराह मिला और उसके पास पड़ी हुई आम्रपाली की पगड़ी मिली। माध्विका ने शीलभद्र से पूछा - "क्या वराह को आपने मारा ?"
"नहीं, मेरा अश्व तो चौंककर भाग खड़ा हुआ था ।'' "तो फिर वराह का वध किसने किया ?"
" संभव है, किसी वनवासी ने वध किया हो । '
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"यदि ऐसा है तो देवी अवश्य बच गई होंगी ।"
उन्होंने पुनः वनप्रदेश में आम्रपाली की खोज में आदमी भेजे । पर वे निराश ही लोटे |
बिबिसार और पुरुष वेशधारिणी आम्रपाली वैशाली के पथ पर बहुत दूर निकल गए।
दोनों अश्व वेग से आगे बढ़ रहे थे। वंशाली एकाध कोस दूर रहा होगा कि आम्रपाली ने अपना अश्व धीमे कर दिया। वह बोली - "स्वामिन् ! यहां से वैशाली के उपवन प्रारंभ होते हैं । हमें पीछे के रास्ते से जाना होगा ।"
"क्यों ?"
" अपने को कोई पहचान न ले, इसलिए ।"
बिंबिसार बोला - " वीणावादक जयकीर्ति को कोई नहीं पहचान सकेगा ।" "चेहरे का तेज
.."
बीच में ही बिंबिसार वोला - "प्रिये ! तेरे तेज के आगे मेरा तेज क्या होगा ? तुम भय मत रखो।"
आम्रपाली प्रियतम की ओर देखकर हंसी और एकटक निहारने लगी ।
२२. कादंबिनी
आचार्य अग्निपुत्र मगधेश्वर के प्रयोजन के लिए एक सुंदरी विषकन्या का निर्माण करना चाहते थे । परंतु उन्हें वंसी सुन्दर कन्या प्राप्त नहीं हो रही थी । रानी त्रैलोक्यसुंदरी ने ऐसी कन्या प्राप्त करने का वचन दिया था और उसने दो