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उत्तर प्रकृतियां
जघन्य स्थिति * अनन्तानुबंधी चतुष्क, - पल्योपम का असंख्येय भाग * अप्रत्याख्यान चतुष्क,
कम 4/3 सागरोपम। * प्रत्याख्यान चतुष्क * संज्वलन क्रोध
दो मास * संज्वलन मान
एक मास * संज्वलन माया
पंद्रह दिन * संज्वलन लोभ
अन्तर्मुहूर्त * पुरुषवेद
आठ वर्ष * पुरुषवेद वर्जित नोकषाय पल्योपम का असंख्येय भाग से नीच गोत्र पर्यंत 66
कम 2/7 सागरोपम। प्रकृतियां * वैक्रिय षटक
पल्योपम का असंख्येय भाग
कम 2/1000 सागरोपम। * आहारक शरीर,
अन्त: कोटा-कोटि सागरोपम। अहारक अंगोपांग,
तीर्थंकर नाम 250. ज्ञान, दर्शन, चारित्र की विराधना किससे होती है? __उ. राग, द्वेष और मिथ्यादर्शन से। 251. साधु के बाईस परीषह किस-किस कर्म के उदय से हैं? प्रज्ञा
-- ज्ञानावरणीय अज्ञान
ज्ञानावरणीय अलाभ
अन्तराय अरति
चारित्र मोहनीय अचेल
चारित्र मोहनीय स्त्री
चारित्र मोहनीय निषद्या
चारित्र मोहनीय याचना
चारित्र मोहनीय आक्रोश
चारित्र मोहनीय सत्कार पुरस्कार
चारित्र मोहनीय 11. दर्शन
दर्शन मोहनीय 12. क्षुधा
वेदनीय
उ. 1.
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