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पांच जाति, चार गति, विहायोगति दो, आनुपूर्वी-चतुष्क, त्रसदशक, स्थावर दशक, वर्णादि चार।
गोत्र कर्म की-2 उच्चगोत्र और नीच गोत्र। 248. आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति कितनी हैं? उ. उत्तर प्रकृतियां
उत्कृष्ट स्थिति * स्त्रीवेद, सातवेदनीय, मनुष्यगति- पन्द्रह कोटि सागरोपम ___ मनुष्यगति आनुपूर्वी * सोलह कषाय
चालीस कोटि सागरोपम * नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, बीस कोटाकोटि सागरोपम
जुगुप्सा * पुरुषवेद, हास्य, रति, देवगति, दस कोटाकोटि सागरोपम
देवगत्यानुपूर्वी प्रथम संहनन, प्रथम संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय यशोकीर्ति, उच्च गोत्र, न्यग्रोध संस्थान, ऋषभनाराच संहनन * सादि संस्थान, नाराच संहनन चौदह कोटाकोटि सागरोपम * कुब्ज, अर्धनाराच संहनन सोलह कोटाकोटि सागरोपम * वामन संस्थान, कीलिका संहनन अठारह कोटाकोटि सागरोपम द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, पर्याप्त साधारण * तिर्यञ्च
तीन पल्योपम * शेष प्रकृतियों की स्थिति मूल प्रकृतिवत् 249. उत्तर प्रकृतियों की जघन्य स्थिति कितनी? उ. उत्तर प्रकृतियां
जघन्य स्थिति * निद्रा पंचक, असातवेदनीय पल्योपम का असंख्ये भाग न्यून
3/7 सागरोपम * सात वेदनीय
बारह मुहूर्त * मिथ्यात्व
पल्योपम का असंख्येय भाग न्यून एक सागरोपम
कर्म-दर्शन 55