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1050. नीच गोत्र कर्म भोगने के कितने हेतु हैं? उ. नीच गोत्र कर्म के उदय से जीव हीनता को प्राप्त होता है। आगम में
नीच गोत्र कर्म के उपभेद और अनुभावों का वर्णन इस प्रकार किया गया
उपभेद - अनुभाव 1. जाति नीच गोत्र - जाति विहीनता-मातृपक्षीय विशिष्टता का अभाव। 2. कुल नीच गोत्र - कुल विहीनता-पितृपक्षीय विशिष्टता का अभाव। 3. बल नीच गोत्र - बल विहीनता 4. रूप नीच गोत्र - रूप विहीनता 5. तप नीच गोत्र - तप विहीनता 6. श्रुत नीच गोत्र - श्रुत विहीनता 7. लाभ नीच गोत्र - लाभ विहीनता 8. ऐश्वर्य नीच गोत्र – ऐश्वर्य विहीनता।' नीच गोत्र कर्म के उदय से मनुष्य को अपमान, दीनता, अवहेलना आदि
का अनुभव होता है। 1051. उच्च गोत्र कर्म किसे कहते हैं? __उ. जिस कर्म के उदय से जीव को उच्च कुल आदि विशिष्टता प्राप्त होती
है उसे उच्च गोत्र कर्म कहते हैं। उच्च गोत्र कर्म देश, जाति, कुल, स्थान,
मान, सत्कार ऐश्वर्य आदि विषयक उत्कर्ष का निवर्तक होता है। 1052. नीच गोत्र कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव को नीच कुल आदि हीनता प्राप्त होती है
उसे नीच गोत्र कर्म कहते हैं। नीच गोत्र कर्म चाण्डाल नट, व्याध, धीवर,
दास्यादि भावों का निर्वर्तक है। 1053. गोत्र कर्म की स्थिति कितनी है? ___ उ. जघन्य आठ-मुहूर्त, उत्कृष्ट बीस करोड़ाकरोड़ सागर। 1054. गोत्र कर्म का अबाधाकाल कितना है?
उ. जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट दो हजार वर्ष।
1. कथा सं. 38
220 कर्म-दर्शन