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* अशुभ प्रकृतियां-9-(1) नील वर्ण, (2) कृष्ण वर्ण, (3) दर्गंध, (4) तिक्त रस, (5) कटु रस, (6) गुरु स्पर्श, (7) कर्कश स्पर्श,
(8) रुक्ष स्पर्श और (9) शीत स्पर्श। 964. आनुपूर्वी नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. विग्रहगति से अग्रिम जन्म स्थान जाते हुए जीव को आकाश प्रदेश की
श्रेणी के अनुसार गमन कराने वाला हेतुभूत कर्म आनुपूर्वी नाम कर्म है।
आनुपूर्वी का उदय वक्रगति से होता है। 965. विग्रह गति से क्या तात्पर्य है? उ. एक भव से दूसरे भव में उत्पन्न होने के मध्य के काल में होने वाली आत्मा
की गति को विग्रहगति' कहते हैं।
966. आनुपूर्वी नाम कर्म की उपप्रकृतियां कितनी हैं? ___उ. चार-(1) नरकानुपूर्वी नामकर्म, (2) तिर्यंचानुपूर्वी नाम कर्म,
(3) मनुष्यानुपूर्वी नामकर्म, (4) देवानुपूर्वी नाम कर्म। 967. किस भव में किस आनुपूर्वी का उदय हो सकता है? उ. जिस भव का आयुष्य और गति का उदय होता है उसी के अनुरूप जीव के
आनुपूर्वी का उदय होता है* नरक आयुष्य नरक गति का उदय होता है तो नरकानुपूर्वी का उदय
होता है। * देवायुष्य एवं देवगति का उदय होने पर देवानुपूर्वी का उदय होता है। * मनुष्य और तिर्यंच गति के जीव को चारों आनुपूर्वियों का उदय हो
सकता है। * देवगति और नरकगति के जीवों को मनुष्यानुपूर्वी व तिर्यंचानुपूर्वी का
उदय हो सकता है। 968. विहायोगति नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस गति से आकाश-स्थान विशेष को पाया जाए उसे विहायोगति कहते
हैं। गमन सदैव आकाश प्रदेश में ही होता है, पृथ्वी पर चलने वाला भी
1. विग्रहगति से समापन्न जीव इलिकागति से अनुत्तर विमान में जाता है अथवा वहाँ से
आता है, तब सात रज्जूप्रमाण क्षेत्र का स्पर्श करता है तथा जो जीव छठी नरक में जाता है अथवा वहाँ से आता है, तब रज्जूप्रमाण क्षेत्र का स्पर्श करता है।
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