________________
823. आयुष्य कर्म बंधते समय किन-किन बोलों का बंध साथ में होता है? उ. आयुष्य कर्म बंधते समय छ: बोलों का बंध होता है। जैसे गति, जाति,
स्थिति, अवगाहना, प्रदेश और अनुभाग इन छ: बोलों का बंध आयुष्य
बंध के साथ होता है। 824. आयुष्य कर्म सवेदी बांधता है या अवेदी? उ. आयुष्य कर्म सवेदी के ही बंधता है अवेदी के नहीं। जीव अवेदी नौवें आदि
गुणस्थानों में होता है पर वहाँ आयुष्य का बंध नहीं होता। 825. अनाहारक अवस्था में आयुष्य का बंध होता है या नहीं? उ. अनाहारक अवस्था में आयुष्य का बंध नहीं होता है। जीव अनाहारक
वक्रगति वाली अन्तराल गति में केवली समुद्घात के तीसरे, चौथे, एवं पांचवें समय में होता है तथा चौदहवें गुणस्थान में होता है। उस समय आयुष्य का बंध संभव नहीं है। तीन पर्याप्तियां पूर्ण हुए बिना आयुष्य का बंध नहीं होता है। वैसे चरम शरीरी के भी आयुष्य का बंध नहीं होता है।
इन दो अवस्थाओं से अलग जीव कहीं अनाहारक होता ही नहीं है। 826. आयुष्य कर्म की स्थिति कितनी है? उ. नरकायुष्य-जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेतीस सागर।
तिर्यञ्चायुष्य-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम। मनुष्यायुष्य-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम। देवायुष्य-जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेंतीस सागर। (यह स्थिति आयु भोग प्रारम्भ होने की अपेक्षा से है) वर्तमान आयुष्य समाप्त होते ही अगले जन्म के आयुष्य का भोग प्रारम्भ हो जाता है। आयुष्य कर्म का बंध जीवन में एक बार ही होता है एवं वह अकेले एक ही
जन्म में पूरा भोग लिया जाता है। 827. साधारण वनस्पति का आयुष्य कितना है? उ. साधारण वनस्पति के जीव एक मुहूर्त में उत्कृष्ट 65, 536 बार जन्म
मरण करते हैं। 828. अन्य योनियों के जीव एक मुहूर्त में कितने जन्म-मरण कर सकते हैं? उ. पृथ्वी, पानी, अग्नि व वायुकाय के जीव 12824 बार जन्म मरण कर
सकते हैं। प्रत्येक वनस्पति के 32000, द्वीन्द्रिय के 80, त्रीन्द्रिय के 60, चतुरिन्द्रिय के 40, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के 24 और संज्ञी पंचेन्द्रिय के जीव एक बार जन्म-मरण कर सकते हैं।
178 कर्म-दर्शन