________________
नपुंसक वेद नगरदाह के समान है। जैसे नगरी की आग बहुत दिनों तक जलती रहती है उसी प्रकार नपुंसक की भोगेच्छा चिरकाल तक निवृत्त नहीं
होती। 754. स्त्रीवेद किन-किन जीवों में पाता है? उ. भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क, पहले-दूसरे देवलोक, पहले किल्विषी, सब
यौगलिक, संज्ञी मनुष्य, संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में स्त्रीवेद पाता है। 755. स्त्रीवेद किन-किन जीवों में नहीं पाता है? उ. सात नारकी, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी मनुष्य, असंज्ञी
तिर्यंच पंचेन्द्रिय, तीसरे देवलोक से सर्वार्थ-सिद्ध तक देवों में स्त्रीवेद नहीं
पाता है। 756. पुरुषवेद किन-किन जीवों में पाता है? उ. सर्वदेवता, सर्वयौगलिक, संज्ञी मनुष्य, संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में पुरुषवेद
पाता है। 757. पुरुषवेद किन-किन जीवों में नहीं पाता है? उ. सात नारकी, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी मनुष्य, असंज्ञी
तिर्यंच पंचेन्द्रिय में पुरुषवेद नहीं पाता। 758. नपुंसक वेद किन-किन जीवों में पाता है? उ. सात नारकी, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी मनुष्य, असंज्ञी
तिर्यंच, पंचेन्द्रिय में वेद एक नपुंसक पाता है। संज्ञी मनुष्य और संज्ञी तिर्यंच
भी नपुंसकवेदी होते हैं। 759. नपुंसक वेद किन-किन जीवों में नहीं पाता है?
उ. सर्व देवता, सर्व युगलियां में नपुंसक वेद नहीं पाता है। 760. क्या अनुत्तर विमान के देवों में वेद का उदय रहता है? उ. अनुत्तर विमान के देवों में वेद मोह का उदय नहीं होता और वह क्षीण भी
नहीं होता, किन्तु उपशान्त रहता है। 761. वेद के उदय में अवस्था का क्या प्रमाण है? उ. वेद के उदय में न वार्धक्य आदि अवस्था प्रमाण है, न तप-श्रुत का
अवगाहन और न दीर्घ संयमपर्याय ही प्रमाण है। वेद के क्षीण होने पर भी स्त्रीलिंग सर्वथा रक्षणीय है। इसीलिए स्त्री केवली, साध्वी योग्य उपकरणों
से आवृत्त हो अपनी रक्षा करती है। 164 कर्म-दर्शन